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________________ 8. श्रीपद- वास्तव में नारदमुनि ब्रह्मचारी हैं, फिर भी वे कलहप्रिय हैं, परस्पर कलह-विवाद करवाते हैं। इस तीर्थ के प्रभाव से उन्हें श्रीपद-मोक्ष रूपी लक्ष्मी प्राप्त हुई है, इससे यह श्रीपद नाम से प्रचलित हुआ है। पर्वेन्द्र- इस तीर्थ पर चैत्री पूर्णिमा के दिन पुंडरीक स्वामी ने मोक्षपद प्राप्त किया था। द्राविड और वारिखिल्ल ने कार्तिकी पूर्णिमा के दिन मोक्ष पद प्राप्त किया था। तब से ये दोनों दिन पर्व की तरह मनाये जाते हैं। ऐसे विविध पर्व इस तीर्थ पर प्रसिद्ध हुए हैं, जिससे यह तीर्थ पर्वेन्द्र नाम से प्रचलित हुआ है। 10. महातीर्थ- जो तीर्थ साधुगण और पापीजनों के समूह के पापकर्म से दूर करते हैं, मुक्तिपद प्राप्त करवाता है, जिस कारण यह तीर्थ महातीर्थ नाम से प्रचलित हआ है। अन्य मतानुसार- अणुव्रतधारक दस करोड़ श्रावकों को भोजन देने से जो फल, पुण्योपार्जन होता है, उससे ज्यादा पुण्योपार्जन इस सिद्धाचल भूमि स्थित सिर्फ एक ही मुनि को आहार दान देने से होता है, ऐसा यह महाप्रभावी, महान है। इस कारण यह तीर्थ महातीर्थ के नाम से प्रचलित हुआ है। 11. शाश्वतगिरि (शाश्वतो)- यह तीर्थाधिराज तीनों काल भूत, भविष्य एवं वर्तमान में शाश्वत है। यह अनादि-अनन्त है। यह बोधिबीज और मोक्षराज्य प्रदाता है, इससे यह तीर्थ शाश्वतगिरि नाम से प्रचलित है। 12. दृढशक्ति (वृढसक्ति)- यह तीर्थ की सेवा-पूजा करने से आत्मा शक्ति दृढ़-अमाप होती है। इससे यह दृढशक्ति नाम से प्रचलित है। अन्य मतानुसार विविध पापकर्मी जीव-अभव्य जीव इसकी तीर्थयात्रा करते हुए अपने दृढ़-गाढ़ पापकर्मों को सेवापूजा आदि धार्मिक क्रियाओं द्वारा क्षय करते हैं। उनके दृढ़ पाप कर्मबंधों का क्षय होता है, इससे यह दृढशक्ति नाम से प्रचलित है। 13. मुक्तिनिलय (मुक्तिलय)- इस भुवन-विश्व के मानव के लिए यह तीर्थाधिराज ही मुक्तिदायक मुक्तिमार्ग रूप है। यह तीर्थ साक्षात् मुक्तिधाम स्वरूप है, जिससे यह मुक्तिनिलय नाम से प्रचलित है। 14. पुष्पदंत-चंद्र और सूर्य आकाश से इस तीर्थ के दर्शन से प्रसन्नता, आनन्द प्राप्त करते है। इस तीर्थ की पुष्पों से पूजा करते हैं। इससे यह पुष्पदंत नाम से प्रचलित है। 15. महापद्म- जिस तरह कमल कीचड़ से उभरता है, उसी तरह जो भव्य जीव सच्चे मन और श्रद्धा से भक्तिभावपूर्वक तीर्थाराधना करते हैं, वे संसार रूप कीचड़ के समुद्र को पार करके मोक्ष सुख प्राप्त करते हैं, जिससे यह महापद्म नाम से प्रचलित है। अन्य मतानुसार कमल कीचड़ से उत्पन्न होता है और पानी से उसकी वृद्धि होती है, फिर भी कमल-पदम (पानी और कीचड़) दोनों से भिन्न-विभक्त रहता है, उसी तरह इस तीर्थ के सेवन से भव्य जीव कीचड़ रूप संसार समुद्र को पार करते हुए मोक्ष पद प्राप्त करते हैं, जिससे यह महापद्म नाम से प्रचलित है। 16. पृथ्वीपीठ (प्रथ्वीपीठ)- आत्मा से चिपके हुए कर्मों का क्षय करते हुए मोक्ष रूप लक्ष्मी के साथ शादी करनी है तो शादीमण्डप और बैठक होनी आवश्यक है। इसी तरह शिवरूपी स्त्री की शादी में मुनिवरों के लिए यह तीर्थ ही मण्डप और बैठक रूपी कार्य करता है, जिससे यह पृथ्वीपीठ नाम से प्रचलित है। पटदर्शन -121
SR No.032780
Book TitlePat Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana K Sheth, Nalini Balbir
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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