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________________ वह कंदबमुनि अपना निर्वाण काल नजदीक जानकर एक करोड़ अन्य मुनियों के साथ सिद्धाचलजी पधारे। उन्होंने एक मास की संलेखना-आराधना की और इसी स्थान से एक करोड़ मुनियों के साथ सिद्धपद-मोक्षपद प्राप्त किया। तभी से यह शिखर कंदबगिरि नाम से प्रचलित हुआ है। यह गिरि सर्व सिद्धि के स्थान रूप है। यहां अनेक प्रभाविक दिव्य औषधियां, रसकूपिका, कल्पवृक्ष इत्यादि पाये जाते हैं। यह गिरि सात्विक भक्तों के हर प्रकार के वांछित पूर्ण करता है और जो निःस्वार्थ अनासक्त भाव से आराधना करते हैं, उन्हें मोक्ष-सिद्धि प्रदान करता है।" तलाध्वज शिखर आगे चलने पर एक और विशिष्ट ट्रंक दिखाई दिया। शक्तिसिंह ने दर्शाया कि यह तलाध्वज नामक शिखर है। तलाध्वज नामक एक मुनि ने वहां से अन्य एक करोड़ मुनियों के साथ सर्व कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया था। वह स्वर्ग में तलाध्वज नामक देव के रूप में प्रचलित हुए। वहां उन्होंने ऋषभदेव भगवंत का एक मंदिर निर्माण करवाया था। तभी से यह शिखर तलाध्वज नाम से प्रचलित है। शक्तिसिंह से विदित होकर भरत राजा ने वहां तलाध्वज नामक देव की स्थापना की है। तालध्वज देव के हाथ में खड्ग, ढाल, त्रिशूल और सर्प अवस्थित होते हैं। यह देव सदैव भक्तों की हर इच्छा पूर्ण करते हैं। 2. अजितनाथ उलकझोल अजितनाथ प्रभु ने शत्रुजय पर चातुर्मास किया। उनके सुधर्मा नामक एक शिष्य अपने दूसरे शिष्य के साथ प्रभु दर्शनार्थ आ रहे थे। गर्मी का समय था। उनके हाथ में पानी (चावल धोया हुआ अचित्त पानी) का कलश था। मध्याह समय होने से थोड़ा आराम करने के लिए प्रथम शिखर पर बैठे। पानी का कलश उन्हीं के पास रखा हुआ था। एक क्षुधातुर कौआ कलश देखते ही वहाँ पहुंच गया और उस पर झपका तो कलश गिर गया और पानी नीचे गिर पड़ा। मुनि क्रोधित हो गये। मुनि ने सोचा जिस तरह इस कौओ के कारण मेरे मन के भाव बिगडे, कषाय उत्पन्न हुआ, इसी तरह भविष्य में अन्य के साथ इस घटना का पुनरावर्तन न हो, उनमें कषाय उत्पन्न न हों, इस दृष्टि से उन्होंने कौओ को श्राप देते हुए कहा, "रे दुष्ट काक! इस प्राणरक्षक जल का तूने क्यों नाश किया है? अब से इसी प्रभावशाली पवित्र तीर्थ पर तेरा कोई स्थान नहीं रहेगा।" उसी दिन से उस तीर्थ पर कोई कौआ दिखाई नहीं देता है। यहां मुनि द्वारा ऐसा भी आदेश दिया गया है कि दुष्काल और विरोध जैसे अनर्थ को समर्थ करने वाला काक पक्षी कभी भी आ जाये तो इस विघ्न का नाश करने के लिए शांति कर्म करना है। ___मुनि ने अपने तप के प्रभाव से सर्व मुनिगण को प्रासुक जल प्राप्त हो, ऐसा निर्माण किया। तभी से यह स्थान उलखझोल (उलफजल, उलखजल) नाम से प्रचलित है। सगर चक्रवर्ती सगर चक्रवर्ती के जिन्हुकुमार प्रमुख 60,000 पुत्र, पूर्वजों के तीर्थ की यात्रा करने को उत्सुक हुए। सबने शत्रुजयसिद्धाचलजी की ओर जाने का निर्धारण किया। उन्होंने पिता सगर चक्रवर्ती से तीर्थयात्रा की स्वीकृति के लिए विनती की और स्वीकृति मिलते ही यात्रा के लिए निकल पड़े। सिद्धाचलजी की यात्रा करते हुए जिन्हुकुमार ने सोचा कि भविष्य में मनुष्य इस तीर्थ का रक्षण कर पायेगा कि नहीं? अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित इस धर्मस्थान का नाश न होने पाये इस चिन्तन से उन्होंने तीर्थ की रक्षा करने का उपाय सोचा। उन्होंने अष्टापद की चौतरफ खाई बनाने का निर्णय किया। कार्यारम्भ हो गया। जमीन खुदते ही अंदर से मिट्टी निकलने लगी। नीचे भुवनपति देवता के भुवन-नागलोक में मिट्टी की वर्षा होने लगी। उत्पात होने लगा तो पटदर्शन -103
SR No.032780
Book TitlePat Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana K Sheth, Nalini Balbir
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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