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________________ सक्षिप्त कथासारः दमयन्त्या लोकोत्तरं सौन्दर्यमाकर्ण्य सर्वेभ्यो दिगन्तरेभ्योः शस्त्र-शास्त्र. विद्यानिष्णाताः कुलीना राजपुत्राः समायाताः। अमरपरिवढाश्चत्वारो लोकपालाः इन्द्र-वरुण-यमाग्नयो नलविषयमहाय्यं दमयन्त्या अनुरागं स्वस्वदूतीभ्यो विदित्वा धृतनलाकारांस्तत्र स्वयम्बरभूमी समायाताः / नागलोकाद् वासुकि: स्वदलेन सह समायातः / सर्वेषामनन्तरं निषधधराधरेन्द्रो नल: समायातो यस्य लोकोत्तरं कामकाम्यं रूपमाकल्प्य सर्वे एव चकिताः समभवन् / ततः कविना समेषां राजपुत्राणां वर्णनं पधायि / राजा भीमो मानवमात्रेण विज्ञातनामगोत्रचरित्राः कथमेते राजपुत्राः सुताय परिचाय्या इति विषण्णचेता स्वकुलदैवतं भगवन्तं नारायणं संस्मार। भक्तवत्सलेन तेन प्रेरिता साक्षात् सरस्वती तत्र प्रादुर्भूय कुमारीरूपिणी राजानमवदत्, अहमेषां राजपुत्राणां कुलशीलादिसर्व शीप्सितं वर्णयिष्यामीति / अनन्तरं सरस्वत्या सर्वाङ्गाणि सर्वशास्त्रमयत्वेन कविना वणितानि / तदनन्तरं परिचारिकाभिः सखीभिश्च सहिता दमयन्ती स्वयम्वरमुत्रमागता / तां विलोक्य सर्वपस्तस्या वर्णनं कृतम् / __ हिन्दी कथासार दमयन्ती के लोकोत्तर सौन्दर्य को सुनकर उसके स्वयम्बर में सभी देशों के शस्त्र एव शास्त्र विद्या के माता कुलीन राजपुत्र आये। इन्द्र, वरुण, यम और अग्नि ये चार दिक्पाल भी आये। अपनी-अपनी दूतियों द्वारा दमयन्ती का नल में अनुराग जानकर सभी ने नल का रूप धारण कर लिया था। पाताल लोक से वासुकी नामक नागराज भी. अपनी सेना के साथ आये। अन्त में निषध देश के राजा नल भी वहाँ पर आये। उनके अनुपम सौन्दर्य को देखकर सभी चकित हो गये। अनन्तर राजा भीम को चिन्ता हुई कि इन अनेक दिशाओं से आये राजाओं के नाम, कुल एवं चरित्र का परिचय दमयन्ती को कोन करायेगा क्योंकि सभी का ज्ञाता कोई भी मानव नहीं है। उन्होंने अपने इष्टदेव भगवान् नारायण का स्मरण किया। भक्तवत्सल भगवान् की प्रेरणा से साक्षात् सरस्वती जी बाला-रूपधारिण कर उस सभा में प्रकट हुई। राजा से उन्होंने कहा कि आप चिन्तित न हों। मैं इन सभी राजाओं के नाम, कुल एवं चरित्र का परिचय आपकी पुत्री को कराऊंगी। कवि के द्वारा सरस्वती के सर्वाङ्गों का सभी शास्त्र के रूप में वर्णन किया गया है। बाद में परिचारिका एवं सखियों के साथ दमयन्ती का स्वयम्बर-सभा में प्रवेश एवं सभी राजाओं द्वारा उसके रूप का वर्णन किया गया है।
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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