SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 929
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 338 नैषधीयचरितं महाकाव्यम् न अस्ति / स कान्तः अन्तः मां न उज्झिता, स्फुटं तं मनश्च न उज्झिता, तत् कायवायवश्च न ( उज्झितारः ) // 94 / / व्याख्या--गच्छन्ति = व्रजन्ति, अमूनि = एतानि, , युगानि = द्वादशाब्दपरिमाणाः दीर्घकालाः, क्षणो न = क्षणरूपः अल्पकालो न, कियत् = किंपरिमाणं, सहिष्ये = मर्षयिष्यामि, हि = यतः, मे = मम, मृत्युः = मरणं, न अस्ति = न विद्यते, अतः सहनस्य अवधिर्नास्तीति भावः / सः = प्रसिद्धः, कान्तः - प्रियः नलः, अन्तः = अन्तःकरणे, मानसे, मां = कान्तां, न उज्झिता = न त्यक्ता ( त्यागकर्ता), स्फुटं = व्यक्तं, तं = कान्तं नलं, मनश्च = मानसं च, न उज्झिता = अद्य न उज्झितृ, आगामिकालेष्वपि न उज्झिष्यतीति भावः / एवं च तत् = मनः, कायवायवः = प्राणाः, न = न उज्झितारः, न त्यागकर्तारः / हन्त ! का गतिरिति भावः / / 94 // ___ अनुवादः--बीते हुए ये युग हैं, क्षण .( अल्पकाल ) नहीं हैं। कितना सहूंगी ?, क्योंकि मेरा मरण भी नहीं है, प्यारे नल अन्तःकरण में मुझे नहीं छोड़नेवाले हैं, स्पष्ट रूपसे उनको मेरा मन भी छोड़नेवाला नहीं है। उस मेरे मनको प्राणवायु भी छोड़नेवाले नहीं हैं / / 94 // ___टिप्पणी-- गच्छन्ति = गम् + लट् ( शतृ ) + जस् / युगानि = वारह वर्पोका एक मानवयुग होता है, ऐसे कई युग हैं यह तात्पर्य है। क्षणः = "निर्व्या. पारस्थिती कालविशेपोत्सवयोः क्षणः / " इति "अष्टादश निमेपास्तु काप्ठा, त्रिंशत्तु ताः कला / तास्तु त्रिंशत् क्षणः / " इति चाऽमरः / अठारह बार पलक माननेपर जितना समय होता है उसे "काष्ठा" और तीस काष्ठाओंमें जितना समय होता है उसे "कला" और तीस कलाओमें जितना समय होता है उसे "क्षण" कहते हैं। महिप्ये = सह + लृट् + इट् / उज्झिता = उज्झ + तृन्+मु। इसका वर्तमानके प्रयोगमें लुटपरक अर्थ नहीं करना चाहिए / न उज्झिता = उज्झ+ लृट् + नि / यहाँपर मेरा मन अभी भी नलको . छोड़नेवाला नहीं है, पीछ भी नहीं छोड़ेगा, यह भाव है। कायवायवः = कायस्य वायवः ( प० त० ) // 9 // मदुप्रतापव्ययशनशीकरः सुराः / स वः केन पपे कृपाऽर्णवः। . उदेति कोटिनं मुदे मदुनमा किम शु सङ्कल्पकणश्रमेण वः / / 65 / / अन्वयः -- हे मुगः / मदृग्रतापव्ययणतणीकर: स व: कृपाऽर्णवः केन पपे ? सङ्कल्पकणश्रमेण मदुतमा कोटिः वः मुदे आणु न उदेति किम् ? // 95 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy