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________________ 306 नैषधीयचरितं महाकाव्यम् तुम स्वयम् अग्निदेवमें अनुरक्त हो रही हो। त्रियगोत्रमें उत्पन्न तुम्हारा अभिलाष तेजस्वी अग्निदेवको छोड़कर अन्यत्र कैसे प्रवृत्त होगा? ! / 54 / / टिप्पण-विलासिनि = विलसतीति तच्छीला विलासिनी, तत्मबुद्धौ, "वो कषलसकत्थस्रम्भः” इससे घिनुण वि + लस+घिनुण ( इन् + डीप + सु। अबोधि = बुध् + लुङ् / कर्म में ) + त / अनुरज्यसे = अनु + रज+ लट् + श्यन् + थास् / “अनिदितां हल उपाधायाः क्ङिति" इससे अनुनासिकका लोप / क्षत्रियगोत्र जन्मनः = क्षत्रियस्य गोत्रं ( प० त. ), तस्मित् जन्म यस्याः सा क्षत्रियगोत्रजन्मा, तस्याः ( व्यधि० वहु० / / ओजस्विनम् = ओजस्+ विनिः+ अम् / अन्यतः = अन्यस्मिन् इति अन्य शब्दसे “आद्यादिभ्य उपसंख्यानम्” इससे सार्वविभक्तिक तसि प्रत्यय / इस पद्यमें अग्नि भी ओजस्वी है और तुम भी ओजस्वी क्षत्रियके वंश में उत्पन्न हो, अत: दोनोंके ओजस्वी ह नेसे समागममें अनुरूपता होनेसे तुम्हारा अग्निमें अनुराग उचित है, ऐसा समर्थन करनेसे वाक्यार्थहेतुक काव्यलिङ्ग अलङ्कार है / / 5 // स्वयकपल्या तनुनापशङ्कया ततो निवर्यं न मनः कथंचन / हिमोपमा तस्य परीक्षणक्षणे सतीषु वृत्तिः शतशो निरूपिताः / / 55 // अन्वयः-( हे दमयन्ति ! ) एकपल्या त्वया तनुतापशङ्कया ततो मन कथंचन न निवर्त्यम् / तस्य परीक्षणक्षणे सतीषु हिमोपमा वृत्तिः शतशोः निरूपिता // 55 // व्याख्या - एकपत्न्या = पतिव्रतया, त्वया = भंवत्या, तनुतापशङ्कया 3 देहदाहसम्भावनया, ततः = अग्नेः, मनः = चित्तं, कथंचन = कथंचनाऽपि, न निवर्त्य = न परावर्तनीयम् / कुत इत्याह / तस्य = अग्नेः, परीक्षणक्षणे = पातिव्रत्यपरीक्षाऽवसरे, सतीपु = पतितासु, सोनादिपु विपये, हिमोपमा तुपारसदशी, वृत्ति:-स्थितिः, शतशः शतकृत्वः, निरूपिता-निर्धारिता / / 55 / / ___ अनुवादः-( हे दमयन्नि ! ) तुम पतिव्रता हो, इस कारणसे तुम्हें शरीरके दाहकी शङ्का कर अग्निदेवसे अपने मनको नहीं हटाना चाहिए. क्योंकि अग्निदेवके परीक्षा करनेके अवसरमें पतिव्रता स्त्रियोंमें बरफके समान स्थिति सैकड़ों बार देखी गई है / / 55 // टिप्पणी - एकपल्या = एकः पतिर्यस्याः सा एकपत्नी, तया ( वहु 0 ) "नित्यं सरन्यादिपु” इस मूत्र से नुक् और डीप् प्रत्यय / तनुतापशङ्कया = तनोस्तापः ( प० त० ) तस्य शङ्का, तया (प० त०)। निवर्त्य = नि+
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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