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________________ अष्टमः सर्गः 251 व्याख्या-प्रसूननाराचशराऽसनेन सह = कामचापेन समम्, हे एकवंशप्रभव८ = हे एककारणोत्पन्नभ्रूयुक्ते !, वयम् = इन्द्रादयो दिक्पालाः, कलादा इव = स्वर्णकारा इव, त्वद्गोरिमसद्धि = त्वद्गौरत्वसंघर्षशीलं, त्वद्गौरवसाम्याऽभिलापीति भावः / अत एव दुर्विदग्धं = दुविनीतं, बभ्रु = पिङ्गलं, हेम = सुवर्ण, दहेम = अग्नौ प्रक्षिपेम, त्वदङ्गमर्दाऽपराधाच्छुद्धिराहित्याच्चाऽस्माकं दाह्य सुवर्णसमर्पणात्सर्वाऽनवद्याऽङ्गसमर्पणमेव सन्तर्पणमिति भावः / / 99 / / अनुवादः-हे कामदेवके धनुके साथ एक वंश ( कुल वा बाँस ) से उत्पन्न भौंहोंवाली ! हम लोग सुनार के समान तुम्हारे गौर वर्णके साथ स्पर्धा ( संघर्ष ) करनेवाले अत एव दुविनीत भूरे सोनेको जलाते हैं / / 99 / / टिप्पणी---प्रसूननाराचशराऽमनेन = प्रमूनानि नाराचा यस्य सः ( बहु० ), तस्य शगसनं, तेन (प० त०) / एकवंशप्रभव८ = एकश्चाऽसौ वंशः (क० धा०), स प्रभवः ( कारणम् ) ययोस्ते एकवंशप्रभवे ( बह० ), ते ८वी यस्याः सा एकवंशप्रभवभ्रः (बहु०), तत्सम्बुद्धौ / यहाँपर 5 शब्द उवङ्स्थानीय है अतः 'नेयङवस्थानवस्त्री'' इस सूत्रसे नदी संज्ञाका निषेध होनेसे "अम्बार्थनद्योह्रस्वः” इस मूत्रकी प्रसक्ति न होनेसे “एकवंशप्रभवभ्रु" ऐसा ह्रस्वाऽन्त पाठ प्रामादिक है अत: “एकवंशप्रभवभ्रः" ऐसा पाठ उचित है यह बहुतसे विद्वानोंका अभिमत है परन्तु महोपाध्याय मल्लिनाथजी "अप्राणिजातेश्चाऽरज्ज्वादीनामुपसंख्यानम्" यहाँपर "अलावू, कर्कन्धः" भाष्यकारके ऐसे उदाहरणोंसे कारसे भी ऊकी प्रवृत्ति होती है यह बात जानी जाती है, अतएव काव्याऽलङ्कारमें वामन पण्डितने भी "ऊकारादप्यूप्रवृत्तः "ऐसा लिखा है। अत एव नदी संज्ञा होनेसे ह्रस्व उपपन्न है। कलादाः = कलाः (स्वर्णखण्डान्) द्यन्तीति / कला+दो+क:+ जस् / "कलादा स्कमकारकाः” इत्यमरः / त्वदगोरिमपद्धिगौरस्य भावो गौरिमा, गौर + इमनिच् + सुः / तव गौरिमा (प० त० ), नं स्पर्द्धते तच्छीलं तत् त्वद्गौरिमन् + स्पर्द्ध + णिनिः ( उपपद०), + अम् / वभ्रू = "बभ्र स्यात्पिङ्गले त्रिपु” इत्यमरः / दहेम = दह + विधिलिङ+ मम् / हे दमयन्ति ! तुम्हारे अङ्गोंके साथ स्पर्धा ( बराबरी ) करने के अपराधसे और गुद्धि न होनेसे भी वैसे सुवर्णको समर्पण करनेकी अपेक्षा पूर्ण रूपसे अनवद्य अपने अङ्गोंका समर्पण तुम करोगी तो हमें तृप्ति होगी यह भाव है / / 99 / /
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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