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________________ अष्टमः सर्गः 207 सः = इन्दुः, महैश्वरेण = महादेवेन महाराजेन च, मौलो शिरसि, तथा यज्वराज्ये अपि = द्विजराजत्वे अपि, आरोपि = आरोपितः / प्रकृष्टधर्मोऽनेक फलजनको भवतीति भावः / लोकत्रयाह्लादकश्चन्द्रोऽपि भवत्सौन्दर्यलेश एवेति तात्पर्यम् / 42 // अनुवादः-जगत्के सौन्दर्य के श्रेष्ठ भागका आपसे ग्रहण किये जानेपर जो चन्द्र ने शिलवत्ति और उञ्छवत्तिका परिशीलन किया उस कारणसे बालरूप होनेपर भी उनको महादेवने अपने शिरमें और ब्राह्मणके राजाके रूपमें स्थापित किया // 42 // टिप्पणी-उच्चितकान्तिसारे = कान्ते: सारः (10 त० ), उच्चितः कान्तिसारो यस्मात् तत्, तस्मिन् (बहु०)। शिलोञ्छवृत्तिः = शिलं च उञ्छश्च: ( द्वन्द्वः / , तौ एव वृत्तिः (रूपक०) / वृत्ति ( जीविका ) के छः भेद हैं, जैसे कि भगवान् मनुने कहा है - ___ "ऋताऽमृताभ्यां जीवेत्तु मृतेन प्रमृतेन वा। सत्याऽनृताभ्यामपि वा न श्ववृत्या कदाचन // " मनुस्मृति 4 4 अर्थात् ऋत . उञ्छवृत्ति शिलवृत्ति ), अमृत ( अयाचित ), मृत (याचना), प्रमृत कृषि ), सत्याऽनृत ( वाणिज्य ) और सेवा। इनमें उञ्छवृत्ति और शिलवृत्ति इन दोनोंको "ऋत" कहते हैं / "उच्छो धान्यकणाऽऽदानं कणिकांडशार्जनं शिलम्" इति यादवः / खेतमें पड़े हुए धान्यकणोंके ग्रहणको ‘उञ्छवृत्ति" और धान्यमञ्जरीसे धान्यकणोंके ग्रहणको "शिलवृत्ति" कहते हैं / इनमें ब्राह्मणके लिए ऋतवृत्ति सर्वोत्तम मानी गई है / अशीलि = शील + लुङ् (कर्ममें) + त / माणवकः = मनोरपत्यं पुमान् मानवः, मनु+ अण+सु। "ब्राह्मणमाणववाड. वाद्यत्" इस सूत्र में निपातनसे .णत्व होकर "माणवः" अल्प: माणवः माणवक: "अल्पे' इस सूत्र से कन्प्रत्यय / महोपाध्याय मल्लिनाथजी लिखते हैं- "अपत्ये कुत्सिते मूढ मनोरौत्सर्गिकः स्मृतः / नकारस्य तु मूधन्यस्तन सिद्धयात माणवः // " यह वचन कहाँका है पता नहीं / “हारभेदे माणवको वाले कुपुरुषेऽपि च / " इति रभसः / महेश्वरेण-महांश्चाऽसौ ईश्वरः, तेन (क० धा०) / यज्वराज्ये विधिना इष्टवन्तो यज्वानः, यज् धातुसे "सुयजोर्ध्वनिप्" इस सूत्रस वनिप् / “यज्वा तु विधिनेष्टवान्" इत्यमरः / यज्वना राज्यं, तस्मिन् ( ष० त० ) / आरोपि = आङ् + रुह + णिच् + लुङ् ( कर्म में )+त / बाल होनेपर भी इन्दु ( चन्द्र )
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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