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________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् अनुवाद:-( हे पुरुषश्रेष्ठ ! ) सुरक्षित इस अन्तःपुरमें आपका जो प्रवेश हुआ, यह ध्या आपने समुद्रको ही पार नहीं किया ? किन्तु इस साहसका क्या फल है ? उसका अभीतक भी निश्चय नहीं कर सकी हूँ॥ 26 // टिप्पणी-अर्णोनिधिः = अर्णसां निधिः (10 त० ) / तीर्णः = तु+क्त (सु)। सुरक्षित अन्तःपुरमें आपका प्रवेश समुद्रको पार करनेके समान है, इस प्रकारसे यहाँपर सादृश्यका आपेक्ष होनेसे निदर्शना अलङ्कार है। विनिश्चि नोमि = वि+निस् + चिञ् + लट् + मिप् // 26 // तव प्रवेशे स्कृतानि हेतुं मन्ये मवष्णोरपि तावदत्र / न लक्षितो रक्षिभर्यदाम्यां पीतोऽसि तन्वा जितपुष्पधन्वा // 27 // अन्धयः- (हे पुरुषश्रेष्ठ ! ) ( अथ वा ) अत्र तव प्रवेशे मदक्ष्णोः सुकृतानि अपि तावत् हेतुं मन्ये, यत् तन्वा जितपुष्पधन्वा ( त्वम् ) रक्षिभटः न लक्षितः, आभ्यां पीतः असि // 27 // व्याख्या-(हे पुरुषश्रेष्ठ ! ) अथ वा, अत्र = इह, . अन्तःपुरे, तव = भवतः, प्रवेशे = प्रवेशने, मदक्ष्णोः = मन्नयनयोः, सुकृतानि अपि = पुण्यानि अपि, तावत् = तत्कालपर्यन्तं, हेतुं = कारणं, मन्ये = जाने, यत् = यस्मात्कारणात्, तन्वा = शरीरेण, जितपुष्पधन्वा = पराजितकामः, त्वमिति भावः / रक्षिभटः = रक्षकयोधः, न लक्षितः = नो दृष्टः, तादृशः सन्, आभ्यां = मन्नयनाभ्यां, पीत:अतितृष्णया दृष्टः, असि = विद्यसे / पुण्याऽतिशयं विना कथमीदृगपूर्वरूपसाक्षात्कारप्राप्तिरिति भावः // 27 // अनुवाद:-(हे पुरुषश्रेष्ठ ! ) अथवा इस अन्तःपुरमें आपके प्रवेशमें मेरे नेत्रोंके पुण्योंको भी तबतक कारण जानती हूँ, जो कि शरीरसे कामदेवको जीतनेवाले आप रक्षक योद्धाओं से नहीं देखे गये और मेरे नेत्रोंसे अत्यन्त तृष्णासे साक्षात्कार किये गये हैं // 27 // टिप्पणी-मदक्ष्णोः = मम अक्षिणी, तयोः (10 त० ), "तावत्" पदसे आपके दर्शनमें मेरे सुकृ तोके सिवाय और भी हेतु सुननेके लिए योग्य है यह अर्थ द्योतित है। तन्वा = हेतुमें तृतीया। जितपुष्पधन्वा = पुष्पाणि धनुर्यस्य सः ( बहु० ), जितः पुष्पधन्वा येन सः ( बहु०) / रक्षिभटः = रक्षिणश्च ते भटाः, तः ( क० धा० ) / पुण्यविशेषके विना कैसे ऐसे अपूर्व रूपके साक्षात्कारका लाभ हो सकता है ? यह भाव है / / 27 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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