________________ सप्तमः सर्गः 165 अनुवादः-सौन्दर्यगुणसे उत्तम दमयन्ती के पदों ( चरणों) को देखकर अल्प होने से अल्पत्व को आश्रय करनेवाले वृक्षोंके किसलयको ( दमयन्तीके पदोंसे लव = अल्प) होनेसे “पल्लव" संज्ञाकी प्राप्ति हुई है हम ऐसा समझते हैं // 98 // टिप्पणी-चारुतया चारो वश्चारुता, तया, चारु + तल+टाप् + टा। "पाद: पदङ्घिश्चरणोऽस्त्रियाम्" इत्यमरः / सौक्ष्म्यात्-सूक्ष्म + व्यञ् + ङसि / लवभावभाजः= लवस्य भावः (10 त० ), तं भजतीति, तस्य, लवभाव+ भज्+ण्वि ( उपपद०) + ङस् / पल्लवशब्दलब्धिः पद्भयां लवः ( प० त०)। स चाऽसौ शब्दः ( क० धा० ), तस्य लब्धिः (10 त० ) / जानीमहे = ज्ञा+लट् + महिङ् / “वयम्" इस कर्तृपदका अध्याहार करना चाहिए। “अस्मदोर्द्वयोश्च" इससे बहुवचन / दमयन्तीके चरण पल्लवसे भी सुन्दर हैं यह भाव है। इस पद्य में उत्प्रेक्षा अलङ्कार है // 98 // जगद्वधूमूर्धसु रूपदर्पाद्यदेतयाधायि पदारविन्दम् / तत्सान्द्रपिन्दूरपरागरागर्धवं प्रवालप्रबलाऽरुणं तत् // 16 // अन्वयः-यत् एतया रूपदर्पात् पदाऽरविन्दं जगद्वधूमूर्द्धसु अधायि, तत् तत्सान्द्रसिन्दूरपरागरागः प्रवालप्रबलाऽरुणं ध्रुवम् // 99 // व्याख्या-यत् = यस्मात्कारणात्, एतया = दमयन्त्या, रूपदर्यात् - सौन्दर्यगर्वात्, पदाऽरविन्दं = चरणकमलं, जगधूमूर्द्धसु = लोकसुन्दरीमस्तकेषु, अधायि = निहितं, तत् = दमयन्त्याः पदाऽरविन्द, तत्सान्द्र-सिन्दूरपरागरागःजगद्वधूमूर्द्धघनसिन्दूरचूर्णलौहित्यः, प्रवालप्रबलाऽरुणं = विद्रुमाऽधिकरक्तवर्ण, ध्रुवम् // 99 // अनुवाव:-जो कि दमयन्तीने सौन्दर्यके गर्वसे लोककी सुन्दरी स्त्रियोंके मस्तकोंपर अपना चरणकमल रख दिया इस कारणसे उन मस्तकोंमें स्थित गाढ सिन्दुरके चूर्णांके लौहित्यसे उनका चरणकमल मगासे भी अधिक लाल वर्ण वाला हो गया मैं ऐसा मानता हूँ // 99 // ___ टिप्पणी- रूपदर्पात् = रूपस्य दर्पः, तस्मात् (10 त०)। पद रविन्द पदम् अरविन्दम् इव (उपमित०)। जगद्वधूमूर्द्धसु-जगति वध्वः ( सः त०)। तासां मूर्धानः, तेषु (10 त०)। अधायि =धाञ्+लुङ् ( कर्ममे )+त / तत्सान्द्रसिन्दूरपरागरागः सिन्दूरस्य परागा: ( ष० त०) / सा श्चि ते सिन्दूरपरागाः (क० धा०), तेषां रागाः (प० त ) / तेषु सान्द्रसिन्दूरप रागरागाः,