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________________ 132 नेवधीयचरितं महाकाव्यम् "अभीक्ष्ण्यं पौनःपुन्यम्" इति काशिका / अभङ्गुरश्रीकं =न भगुरा ( नञ्० ) / अभङ्गुरा श्रीर्यस्य सः, तम् ( बहु०)। "शेषाद्विभाषा" इससे समासाऽन्त कप् / नन्द-मुखम् इन्दुरिव, तम् ( उपमित० ) / अस्थापयत्-स्था+ णिच् + लङ् + तिम् / व्याकरणमें जैसे "सरूपाणामेकशेष एकविभक्तौ" इस सूत्रसे तुल्यरूपवाले शब्दोंमें एक शेष रहता है, और लुप्त हो जाते हैं उसी तरह ब्रह्माजीने कुहकी रातोंमें भङ्गुरश्रीवाले चन्द्रबिम्बोंको लोप कर उनके स्थानमें अभङ्गुरश्रीवाले दमयन्तीके मुखको स्थापित किया है क्या? इस तरह उत्प्रेक्षा अलङ्कार है, चन्द्रबिम्ब क्षयशील है दमयन्तीमुख अक्षयशील है ऐसा कहनेसे व्यतिरेक अलङ्कार व्यङ्गय है // 59 // कपोलपत्त्रात्मकरात सकेतुभ्यां जिगीषुधनुषा जगन्ति / इहाऽवलम्ब्याऽस्ति रति मनोभू रज्यद्वयस्यो मधुनाऽधरेण / / 60 // अन्वयः -- मनोभूः कपोलपत्त्रात् मकरोत् सकेतुः, भ्रूभ्यां धनुषा जगन्ति जिगीषुः, अधरेण मधुना रज्यद्वयस्यः इह रतिम् अवलम्ब्य अस्ति // 60 // व्याख्या- मनोभूः = कामः, कपोलपत्त्रात् = भैमीगण्डस्थलपत्त्रभङ्गात् एव, मकरात् = तन्नामकात्स्वचिह्नात्, सकेतुः केतुमान्, मकरध्वज इति भावः / भ्रूभ्यां = भैमीभ्रूभ्याम् एव, धनुषा-कार्मुकेण, जगन्ति = लोकान्, जिगीपुः = जेतुम् इच्छु:, अधरेण = भैम्यधरेण एव, मधुना = क्षौद्रेण, वसन्तेन च. रज्यद्वयस्यः - अनुरक्तसख: सन्, इह = अस्यां भैम्यां, रति = प्रीति स्वदेवीं च, अवलम्ब्य = अवलम्बनं कृत्वा, अस्ति = विद्यते। जगज्जिगीषोः कामस्य सकलाऽपि साधनसम्पत्तिभम्यामेवाऽस्तीति भावः / / 60 // अनुवादः-- कामदेव दमयन्तीके कपोलके पत्त्रावलीरूप मकरसे केतुवाला अर्थात् मकरध्वज, दमयन्तीके भ्रूरूप धनुसे जगत्को जीतनेकी इच्छा करनेवाला, दमयन्तीके अधरम्प मधु ( शहद वा वसन्त ऋतु ) से अनुरक्त मित्रवाला होकर दमयन्तीमें रति ( प्रीति वा अपनी पत्नी ) का अवलम्बन कर रहा है / 60 // टिप्पणी-कपोलपत्वात् = कपोले पत्त्रं, तस्मात् ( स० त० ) / सकेतुः = केनुना महित: ( तुल्ययोगबहु० ) / रज्यद्वयस्यः = रज्यन् वयम्यो यस्य सः ( बहु० ) / जगतको जीतनेकी इच्छा करनेवाले कामदेवकी विजयकी संपूर्ण साधन-सम्पत्ति दमयन्तीमें ही है यह तात्पर्य है। इस पद्यमें पन्त्रभङ्ग आदिमें आरोप्यमाण केतु आदिके तादात्म्यसे प्रस्तुत जगत्की जयमें उपयोगिता होनेसे परिणाम अलङ्कार है / उसका लक्षण है
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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