________________ षष्टः समः 73 ईहे = इच्छामि, पदार्थत्रयप्राप्तिसाधनरूपत्वाद् भूलोको देवलोकाच्छ्रेयानिति भावः // 98 // ___ अनुवादः-स्वर्गमें रहनेवालोंको सुख ही मिलता है, धर्म नहीं, इस मनुष्यलोकमें सुख और धर्म दोनों ही होते हैं / (मनुष्यलोकमें) यज्ञ करनेसे देवताओंकी प्रीति भी सुकर है। इस स्थितिमें सुख, धर्म और देवताओंकी प्रीति इन तीनोंको छोड़कर सुखमात्रको मैं क्यों चाहूँ ? // 98 // टिप्पणी-सताम् = अस् + लट् ( शतृ)+आम् / “श्नसोरल्लोपः" इससे अकारका लोप / इष्टया यज् + क्तिन् +टा / सुकरा=सु+क+खल + टाप+ सु। त्रयं = त्रि+तयप् ( अयच् ) + अम् / विहाय = वि + हा+क्त्वा (ल्यप् ) / ईहे - ईह + लट् + इट् / इस पद्यमें समुच्चय अलङ्कार है // 98 // सापोरपि स्वः खलु गामिताऽधो गामी स तु स्वार्गमितः प्रयाणे।। इत्याति चिन्तयतो हृदि / द्वयोरुदर्कः किमु शर्करे न ? // 6 // अन्वयः-साधोः अपि स्वः अधो गामिता खलु / स इतः प्रयाणे तुं स्वर्ग गामी, इति आयतिं चिन्तयतः हृदि द्वयोः उदर्कः द्वे शर्करे न किमु ? . ( शर्करे एव / / / 99 // ___ व्याख्या-प्रकारान्तरेण स्वर्गाद् भूलोकस्य श्रेयस्त्वं प्रतिपादयति-साधोरिति / साधोः अपि = सुकृतिनः अपि, स्वः = स्वर्गात्, अधः = अधोलोके, गामिता = गमिष्यत्ता, खलु = निश्चयेन / सः = साधुः, इतः = अस्मात् भूलोकात, प्रयाणे = गमने, मरणे सतीति भावः / स्वर्ग = सुरलोकं, गामी = गमिष्यति / इति = इत्थम्, आयतिम् = उत्तरकालं, चिन्तयतः = विचारयतो विवेकिनः, हृदि हृदये, द्वयो = उभयोः, स्वर्गभूलोकयोः, उदर्कः = उत्तरफलं, द्वे = उभे, शर्करे न किमु = शर्कराप्राये न किम् ? शर्करे एवेति भावः / स्वर्गफलरूपा एका शर्करा मृत्प्राया इक्षुसंभवा, मर्त्यलोकफलरूपा अपरा शर्करा शिलाशकलप्राया इक्षुसंभवा / उभे अपि शर्कराकल्प इति भावः // 99 // अनुवादः-धार्मिकको भी स्वर्गलोकसे मनुष्यलोकमें आना निश्चय है, वह इस ( मनुष्य ) लोकसे मरनेपर स्वर्गलोकमें जायगा इस तरह उत्तरकालका विचार करनेवालेके हृदयमें स्वर्ग और मनुष्यलोक दोनोंका उत्तरफल दोनों ही शर्कराएं नहीं हैं क्या ? ( स्वर्गफल कंकड़प्राय शर्करा और मनुष्यलोकफल इक्षुविकार शर्करा है यह तात्पर्य है / ) / / 99 //