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________________ भूमिका महाकाव्य नैषधीयचरित और महाकवि श्रीहर्ष संस्कृतके महाकाव्योंमें नैषधीयचरितका उच्च स्थान है। यों तो संस्कृतमें काव्य अपरिमित हैं, परन्तु पठनपाठनमें लघुत्रयी, बृहत्त्रयी और पञ्च महाकाव्य बहुत ही प्रसिद्ध हैं / लघुत्रयीमें प्रस्तुत महाकाव्यका परिगणन न होनेसे उसके विषयमें कुछ भी न कहकर बृहत्त्रयी और पञ्च काव्योंकी कुछ चर्चा की जाती है। किरातार्जुनीय, शिशुपालवध और नैषधीयचरित ये तीन महाकाव्य बृहत्त्रयीके रूपमें विख्यात हैं / इसी तरह कुमारसम्भव, रघुवंश, किरातार्जुनीय शिशुपालवध और नैषधीयचरित ये पांच महाकाव्य 'पञ्चकाव्य" के रूपमें विख्यात हैं और पठनपाठनमें बहुप्रचलित हैं। इन दोनों विभागोंमें व्याकरणके "यथोत्तरं मुनीनां प्रामाण्यम्' इस उक्तिके समान पूर्वकी अपेक्षा पर श्रेष्ठ माने गये हैं। लोकोत्तर चमत्कार, रस, भाव, ध्वनि, अलङ्कार, पदलालित्य और वर्णन तथा प्रमाणमें असाधारणता इत्यादि गुणगणोंसे नैषधीयचरित महाकाव्य सब काव्योंमें श्रेष्ठ माना गया है / पूर्वोक्त इन सभी काव्योंका कथानक इतिहास और पुराणसे लिया गया है परन्तु इनको आकर्षक मनोहर कल्पनासे सजाकर . महाकवियोंने अतिशय सुन्दरता और नवीनतासे चित्रित किया है / अतएव / "अपारे काव्यसंसारे कविरेकः प्रजापति / यथेदं रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते // शृङ्गारी चेत्कवि: काव्ये सर्वं रसमयं जगत् / स एव वीतरागश्चेन्नीरसं सर्वमेव तत् // " यह उक्ति विशेषतया इन लोगों में लागू होती है। यद्यपि-- "उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम् / नैषधे पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः // " इस उक्तिसे नैषधमें पदलालित्यकी विशेषता होने पर भी तीनों गुण होनेसे माकी विशेषता परिलक्षित होती है, परन्तु--
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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