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________________ 201 श्लोकाः 114 99 . . . विनिहितम् श्लोकानुक्रमणिका' श्लोकाः श्लोकाङ्काः | श्लोकाः त्वमिव कोपि 98 | रुचय चारुमते स्वमुचितं नयनाचिषि रतिपतिप्रहितानिल. दहति कण्ठमयम् रतिपतेविजयास्त्र. दहनजान रतिवियुक्तमनात्मपरज्ञ दुगुपहत्यपमृत्यु | रिपुतरा द्रुतविगमित० 118 वदनगर्भगतम् द्विजपतिग्रसनाहित० ( प्र०) 73 | वद विधुन्तुदमालि ध्रुवमधीतवती | विधिरनङ्ग. न खल मोहवशेन विधुरमानि नरसुराजभवामिव 44 | विधुविरोधि. नलविमस्तकितस्य निपततापि न विरहतप्ततदङ्ग निविशते यदि विरहतापिनि निशि शशिन् भज विरहपाण्डिम० न्यधित तद्धृदि विरहपाण्डुकपोल. पिकरुतिश्रुति विरहिणो विमुखस्य पुरभिदा विरहिभिर्बहु. प्रकृतिरेतु गुणः विरहिवर्गवध० प्रियकरग्रहमेव 30 | व्यतरदथ प्रियसखीनिवहेन .101 बज ति त्यज फलमलभ्यत शशकलङ्क भयङ्कर बत ददासि 84 | शशिमयं दहनास्त्र. भवनमोहनजेन श्रवणपूरतमाल० मदनतापभरेण 10 | श्रीहर्ष कविराज. मनसि सन्तमिव 12 | षडतव: कृपया मुखरयस्व यशोनव. 53 | सखि जरां परिपृच्छ यदतनुज्वरभाक् | सकलया कलया यदतनुस्त्वमिदं 93 | सहचरोऽसि 55 123
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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