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________________ द्वितीयः सर्गः दमयन्तीगुणवर्णना, अधैर्यधारिणः=अत्यन्ताऽधीरस्य, ममनलस्य, मदनानलबोधने कामाग्निप्रज्वलने, धाय्या-सामिधेनी, अग्निसमिन्धनसमर्था ऋगिति भावः / अभवत् =अभूत, धिक् =अधैर्यधारिणमिति शेषः / अधैर्यधारिणो मम निन्देति भावः // 56 // ____ अनुवाद-हे हंस ! लोगोंसे मेरे कानोंमें अतिथि बनायी गयी (पहुंचायी गयी) अपरिमित मधु (शहद) के समान दमयन्तीकी कथा अधीर होनेवाले मेरे कामाऽग्निको प्रज्वलित करने में सामिधेनी (अग्निको प्रदीप्त करनेवाली ऋचा)सी हुई है / मुझ अधीरको धिक्कार ! // 56 // .. टिप्पणी-श्रवणप्राघुणिकीकृता=अप्राघुणिका प्राघुणिका यथा सम्पद्यते तथा कृता प्राघुणिकीकृता, प्राघुणिक+वि++क्त + टाप् / “आवेशिक प्राघुणिक आगन्तुरतिथिस्तथा" इति हलायुधः / श्रवणयोः प्राघुणिकीकृता ( स० त० ) / अमितं न मितम् (नब०)। तत्कथा=तस्याः कथा (ष० त० ) / अधैर्यधारिणः= धैर्य धारयतीति तच्छील: धैर्यधारी, धैर्य + धृ + णिच् +णिनिः ( उपपद०)। न धैर्यधारी, तस्य ( न० ) / मदनाऽनलबोधने= मदन एव अनलः ( रूपक ), तस्य बोधनं, तस्मिन् ( ष० त०)। धाय्या - धीयते अनया समित् इति धाय्या ( ऋक् ) "पाय्यसान्नाय्य निकाय्यधाय्यामानहविनिवाससामिधेनीषु" इस सूत्रसे “धा" धातुसे करणमें ज्यत् होकर आय आदेशका निपातन और टाप् प्रत्यय / "ऋक् सामिधेनी धाय्या च या स्यादग्निसमिन्धने" इत्यमरः / अर्थात् जिस ऋक्का उच्चारण कर बाय जलाते हैं, उसे “सामिधेनी" और "धाय्या" भी कहते हैं। ऋक्का लक्षण है--- "अथ व्यवस्थितपादा ऋचः" अर्थात् छन्दोविशेषसे जहाँपर पादव्यवस्था होती है, उसे "ऋक्" कहते हैं / इस पद्यमें प्रथम चरणमें रूपक, मदनमें अनलत्वका आरोप कथामें मन्त्रत्वके आरोप में निमित्त होनेसे अश्लिष्टशब्दनिबन्धन परम्परित रूपक है। इस प्रकार इन दोनोंका अङ्गाङ्गिभाव होनेसे सर अलङ्कार है / / 56 // विषमो मलयाऽहिमण्डली विषफूत्कारमयो मयोहितः / बत ! कालकलत्रदिग्भवः पवनस्तद्विरहाऽनलैधसा // 57 // अन्वयः-विषमः कालकलत्रदिग्भवः पवनः तद्विरहाऽनलैधसा मया मलयाऽहिमण्डलीविषफूत्कारमय ऊहितः बत ! // 57 // व्याख्या-विषमः प्रतिकूलः, कालकलत्रदिग्भवः यमदिशाभवः, दाक्षि
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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