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________________ हितीया सर्ग: अनुवाद-अपने कारण दण्डसे उत्पन्न चक्र भ्रमणकारकत्वस्वरूप गुण कलशरूप कार्यमें संक्रान्त हुआ है क्या? जिस कारणसे कि वह ( कलस) ' दमयन्तीके उच्च कुचोंके स्वरूप में परिणत होता हुआ लावण्यके प्रवाहमें पकवाककी भ्रान्ति वा कुम्भकारके दण्डभ्रमणको कर रहा है // 32 // टिप्पणी-निजहेतुदण्डजः=निजश्चासी हेतुः (क० धा० ) स चासो दण्ड: (क० धा० ), तस्माज्जातः, निजहेतुदण्ड+जन् +डः / चक्रघ्रमकारितागुणः=भ्रमणं भ्रमः, "भ्रम अनवस्थाने" धातुसे "भावे" इस सूत्रसे भावमें घन, और "नोदात्तोपदेशस्य मान्तस्याऽनाचमेः" इस सूत्रसे वृद्धि का निषेध / "भ्रमोऽम्बूनिर्गमे भ्रान्ती कुविन्दभ्रमयोरपि" इति मेदनी / चक्रस्य भ्रमः (10 त० ) “चक्रो गणे चक्रवाके चक्रं सैन्यरथाऽङ्गयोः / ग्रामजाले कुलालस्य भाण्डे राष्ट्राऽस्त्रयोरपि" इति विश्वः / चक्रभ्रमं करोरीति तच्छीलः चक्रभ्रमकारी, चक्रभ्रम+ कृ+णिनि+सु (उपपद०) चक्रभ्रमकारिणो भावः चक्रभ्रमकारिता, चक्रभ्रमकारिन् + तल+टाप् / सा एव गुणः (रूपक०) "गुणः प्रधाने रूपादौ" इत्यमरः / तदुच्चकुचौ=उच्ची च तो कुची (क० धा० ) / तस्या उच्चकुची (प० त०) / भवन् भवतीति, भू+लट् + शत+सु / प्रभाझरचक्रभ्रमं=प्रभाणां झरः (10 त०), चक्रस्य भ्रमः (10 त०) प्रभाझरे चक्रभ्रमः, तम् ( स० त० ) चक्रवाकभ्रान्ति कुलालदण्डभ्रमणं च / आतनोति - आङ् + तनु+लट् +तिप् / .. ___ महाकविने इस पद्य में न्यायशास्त्र में अपनी अभिज्ञता दरसाई है। न्यायशास्त्र के अतुसार कारणके तीन भेद होते हैं-समवायिकारण, असमवायिकारण और निमित्तकारण / जिसमें समवाय सम्बन्धसे विद्यमान होकर कार्य उत्पन्न होता है उसे "समवायिकारण" कहते हैं, जैसे घटका,कपाल समवायिकारण है वेदान्ती इसे ही "उपादान कारण" कहते हैं। समवायिकारण द्रव्य ही होता है / घटका कपालद्वयसंयोग "असमवायिकारण" है। असमवायिकारण गुण वा कर्म होता है, द्रव्य नहीं। समवायिकारण और असमवायिकारणसे भिन्न कारणको निमित्तकारण कहते हैं, जैसे घटका कुलाल, दण्ड आदि निमित्त कारण हैं / "कारणगुणाः कार्यगुणानारभन्ते" अर्थात् कारणके गुण कार्यके भुगोंको बनाते हैं / जैसे कि पटका तन्तु समवायिकारण है, शुक्ल तन्तु शुक्ल पटका और कृष्ण तन्तु कृष्ण पटका निर्माण करते हैं. यह नियम मात्र समवायिकारणमें चरितार्थ होता है असमवायिकारण और निमित्तकारणमें
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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