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________________ मैषधीयचरितं महाकाव्यम् दिव्यशोधने कृते सतीति भावः / निखिलं =समस्तं, पन = कमलं, तन्मुखात्दमयन्त्याननात्, अभाजि-अभजि, स्वयमेव भग्नमभूदित्यर्थः / अत एव अधुंना अपि =साम्प्रतम् अपि, भङ्गलक्षणं पराजयचिह्न, सलिलोन्मज्जनंजलादूर्वभवनं, न उज्झति - न जहाति, स्फुटम् - इव, जलदिव्योन्मज्जनस्य पराजयचिह्नत्वस्मरणादिति भावः // 27 // अनुवाद-परमशोभाकी परीक्षामें सम्पूर्ण कमल दमयन्तीके मुखसे हार गये. इसी कारणसे अब तक वे पराजयके चिह्नरूप जलसे उन्मज्जन नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसा मालूम हो रहा है // 27 // . टिप्पणी-सुषमाविषये = सुषमा विषयो यस्मिन् तत्, तस्मिन् (बहु० ) / "सुषमा परमा शोभा" इत्यमरः / तन्मुखात्-तस्या मुखं, तस्मात् (ष०त०)। अभाजि="भजो आमर्दने" इस धातुसे कर्मकर्ता लुङ्, "चिण्भावकर्मणोः" इससे चिण, "भजेश्च चिणि" इससे विकल्पसे 'न' का लोप, अतः एक पक्षमें "अभजि" ऐसा भी रूप बनता है। भङ्गलक्षणं = भङ्गो लक्षणं यस्य तत् ( बहु० ) / सलिलोन्मज्जनं-सलिलात् उन्मज्जनं, तत् (ष० त०) / उज्झति"उज्झ उत्सर्गे" धातुसे लट् +तिप् / दमयन्तीका मुख और कमलमें से किसमें अधिक शोभा है इसकी परीक्षाके लिए जल दिव्य किया गया। उसमें कमल जल में न डूबकर ऊपर उठा हुआ है, अत एव उसका पराजय हुआ है, दमयन्तीके मुखके समान उसमें शोभा नहीं है, इसकी यहाँपर उत्प्रेक्षा की गई है। जलदिव्यके विषय में योगीश्वर याज्ञवल्क्यने लिखा है "समकालमिषं मुक्तमानीयाऽन्यो जवी नरः / गते तस्मिन्निमग्नाऽङ्गं पश्येच्चेच्छुद्धिमाप्नुयात् // " 2 / 109 // :- इस पद्यमें उत्प्रेक्षा अलङ्कार है, "स्फुटम्" यह पद उत्प्रेक्षाका वाचक है। धनुषी रतिपञ्चबाणयोदिते विश्वजयाय तद्भवो। नलिके न तवुच्चनासिके त्वयि नालीकविमुक्तिकामयोः // 28 // अन्वयः-तद्धृवी विश्वजयाय उदिते रतिपञ्चबाणयोः धनुषी, तदुच्चनासिके त्वयि नालीकविमुक्तिकामयोः रतिपञ्चबाणयोः नलिके न // 28 // ज्याल्या-तद्धृवी-दमयन्तीध्रुवी, विश्वजयाय = जगद्विजयाय, उदितेउत्पन्ने, रतिपञ्चबाणयोः = रतिकामदेवयोः, धनुषी-चापी, ध्रुवम् / एवं तदुच्चनासिके=दमयन्त्युन्नतनासाच्छिद्रे, त्वयि भवति, नालीकविमुक्ति
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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