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________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् - सप्तम सर्ग दमयन्तीके अङ्गप्रत्यङ्गोंमें नलका दृष्टिपात / नलका मन ही मन दमयन्तीके केशोंसे आरम्भ कर नखपर्यन्त शरीरके अवयवोंका सविस्तर वर्णन कर उनके समीप प्रकटरूप होनेकी इच्छा करना। अष्टम सर्ग दमयन्ती और उनकी सखियोंका नलको देखकर अनेक मनोभावोंका वर्णन / उनका नलसे "आप कौन हैं ? और कहाँसे आये हैं ?'' इस प्रकार प्रश्न करनेमें भी असमर्थ होकर आसन छोड़ कर उठना, तब स्वयम् दमयन्तीका नलके प्रति मधुरवचनोंसे स्वागत वाक्यका भाषण / आसनपर बैठनेका अनुरोध कर "आप कौन हैं ? कहाँसे आये हैं ? और कहाँ जायेंगे ?" इत्यादि प्रश्न दमयन्तीका नलके रूपकी प्रशंसा करना / दमयन्तीका नलके कुल आदिका परिचय पूछकर उनमें नलत्वकी संभावना करना / तब आसनपर बैठकर नलका आपनेको इन्द्र आदि देवताओंका सन्देश लेकर आया हुआ दूत बतलाना क्रमपूर्वक नलका द-मन्तीके विरहसे इन्द्र, अग्नि, यम, और वरुणकी अवस्थाका वर्णन करना और चारों देवताओंके प्रणयसन्देशका वर्णन कर एकको वरण करनेके लिए प्रार्थना करना / नवम सर्ग नलवणित इन्द आदि देवताओंके प्रणयसन्देशको अनुसुना-सा कर दमयन्तीका पुनः नलके कुल और नामका प्रश्न करना उनसे अनावश्यकताका प्रतिपादनकर नलका देवताओंकी प्रणय-प्रार्थनाका उत्तर देने के लिए दमयन्तीसे अनुरोध कर अपनेको चन्द्र वंशका अंकुर बतलाकर शिष्टलोग अपने नामका ग्रहण नहीं करते हैं'कहकर नामकीर्तन में अपनी अगमर्थता जताना तब दमयन्तीका भी परपुरुष के माथ कुलललनाके संभाषणमें अनौचित्य प्रतिपादनकर देवताओं के प्रणयसन्देशके उत्तर देन में अपनी असमर्थता दिखाना। तब दमयन्तीकी सखीका दमयन्तीके अभिप्रायको अपने वचन कहना और नल की अप्राप्तिमें दमयन्तीकी आत्महत्या करने का इरादा जताना / तब नलका आत्महत्या करनेपर भी दमयन्तीपर तत्त. देवताओंका अधिकार होने का वर्णन करना फिर उनका दमयन्तीसे देवताओंमें किसी एकको वरण करने के लिए अनुरोध करना / दमयन्तीका उस वाक्यको अनसुना-सा कर नलको यमदूतके समान कहना। तब सखीका नलके प्रति दमयन्तीका दृढ़ अनुरागका वर्णन करना तब भी दूतकर्ममें धुरन्धर नलका इन्द्र
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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