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________________ भूमिका सार अलङ्कारके द्वारा इन्द्रको श्रेष्ठताका कैसा मनोहर वर्णन है"लोकस्रजि द्यौदिवि चादितेया अत्यादितेयेषु महान्महेन्द्रः / किङ्कर्तुमर्थी यदि सोऽपि रागाज्जागति कक्षा किमतः पराऽपि // 6-81 / स्वर्गसे भी भारतवर्षकी श्रेष्ठताका कितना सुन्दर वर्णन है"स्वर्गे सतां शर्म, परं न धमां भवन्ति भूमाविह तच्च ते च / इष्टयाऽपि तुष्टिः सुकरा सुराणां कथं विहाय त्रयमेकमीहे" / / 6-68 / एक दमयन्तीको देखनेसे अनेक अप्सराओंको देखनेका कौतुक पूर्ण होता है, इस बातको कैसी विलक्षणतासे दिखाया है भ्रूश्चित्र रेखा च, तिलोत्तमाऽस्या नासा च, रम्भा च यदूरुसृष्टिः / दृष्टा ततः पूरयतीयमेकाऽनेकाऽप्सरः प्रेक्षणकौतुकानि" // 7-62 / महाराज नल कामदेव और अश्विनीकुमारोंसे भी सुन्दर हैं इस बातको दमयन्ती के मुखसे किस तरह विलक्षणतासे प्रदर्शित किया है "न मन्मथस्त्वं स हि नाऽस्तिमूर्तिर्न वाऽऽश्विनेयः स हि नाऽद्वितीयः / चिह नैः किमन्यैरथवा तवेयं श्रीरेव ताभ्यामधिको विशेषः" // -26 / दमयन्ती नलको "आपकी वाणी मात्रके सुननेसे नाम सुननेकी इच्छा शिथिल नहीं हुई है" इस बातको दृष्टान्त अलङ्कारसे कैसे मधुरतापूर्वक कहती है "गिरः श्रुता एव तव श्रवःसुधाः, श्लथाऽभवन्नाम्नि तु न श्रुतिस्पृहा / पिपासुता शान्तिमुपैति वारिणा, न जातु दुग्धान्मधुनोऽधिकादपि" // 65 // नैषधीयचरितके एकसे नौ सर्गों तक आपाततः कतिपय मनोहर श्लोकोंका प्रदर्शन किया गया है, इसको परिसंख्याके रूपमें नहीं समझना चाहिए। ___ नैषधीयचरितकी इस नवीन चन्द्रकलाव्याख्यामें मैंने प्राचीन तथा नवीन जीवातु, प्रकाश और जयन्तीका निरीक्षणपूर्वक छात्रोंको सुगमतया बोध करानेका प्रयत्न किया है, मैं इस विषयमें कहाँ तक सफल हुआ हूँ इस विषयमें कृतवेदी विद्वद्गण तथा छात्रगण ही प्रमाण हैं / अन्तमें त्वरा और प्रमादके कारण होनेवाले स्खलनमें सूचनाकी प्रार्थना कर मैं अपने लघुवक्तव्यको समाप्त करता हूँ। वाराणसी, ब्रह्माघाट शेषराजशर्मा सं० 2033 मेषसंक्रान्तिः /
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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