SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1026
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... बशमः सर्गः भावा-ओषसरागमिवाश्रितमनुलेपनं संविधाणे / धामिव सभां विचुम्बति नलेन लेभे नृपैः शोभा / / अनुवाद:- सान्ध्यराग के समान अङ्गराग को धारण करते हुये उस नृपचन्द्र नल के सभा में प्राप्त होने जाने पर चन्द्रमा के आकाश मण्डल में आ जाने से नक्षत्रों की शोभा के समान राजाओं की शोभा आंखों के विषयता को त्याग कर न जाने कहाँ चली गई, यह आश्चर्य है। सभी की दृष्टि अन्यत्र से हटकर उस नल को देखने में लग गयी // 39 // प्राग् दृष्टयः क्षोणिभुजाममुष्मिन्नाश्चर्यपर्युत्सुकिता निपेतुः। अनन्तरं दन्तुरितभ्रुवान्तु नितान्तमीकिलुषा दृगन्ताः // 40 // अन्वयः-प्राक् अमुष्मिन् क्षोणिभुजाम् दृष्टयः आश्चर्यपर्युत्सुकिताः निपेतुः अनन्तरम् तु दन्तुरितभ्रुवाम् दगन्ताः नितान्तम् ईयकिलुषाः निपेतुः / व्याया-प्राक् =प्रथमदर्शने, अमुष्मिन् = नले, क्षोणिभुजाम् = नृपणाम्, दृष्टयः = नेत्राणि, आश्चर्यपर्युत्सुकिताः= विस्मेरोत्कण्ठिताः, निपेतुः =नियतन्ति स्म, अनन्तरम् = पश्चाद, तु दन्तुरितध्रुवाम् = द्वेषात् विषमितभ्रुवाम्, दृगन्ता: = दृक् कोणाः, नितान्तम् = अत्यन्तम्, ईर्ष्याकलुषाः = विद्वेषमलिनाः, निपेतुः= न्यपतन् / टिप्पणी-क्षोणिभुजाम् = क्षोणिम् भुञ्जन्तीति क्षोणिभुजः तेषां क्षोणिभुजाम् सोपपदाद् भुजेः क्विप् ( उपपदसमासः ) / आश्चर्यपर्युत्सुकिता विस्मयविकसिताः आश्चर्येण पर्युत्सुकिताः (तृ० तत्पु०)। दन्तुरिताध्रुवावाम् = दन्तुरिता ध्रुवो येषान्ते तेषां दन्तुरित ध्रुवाम् (बहुव्रीहिः)। ईर्ष्याकलुषाः= ईष्यया कलुषाः (तृ० तत्पु०)। प्राक्सौन्दर्यातिशय विलोकनेन विस्मरत्वात विस्फारिता दमयन्तीलाभवैधुर्याकलनेन तु मालिन्यं तासामिति भावः। भावः-सचकितं प्रथमं प्रभया तया नलमवेक्ष्य समुत्सुकचक्षुषा। तदनुसेयनिचीनदृगन्ततो नृपतयो ददृशुश्च सभागतम् // अनुवाद:-सभा में वर्तमान राजा लोगों ने' आये हुए नल को पहले सौन्दर्यातिशय के कारण साश्चर्य होकर बड़ी उत्कण्ठा से देखा, बाद में दमयन्ती के लाभ से निराश होने के कारण ईर्ष्या से कलुषित आँखों के कोण से देखा अन्तनिहित भाव के कारण थोड़े ही समय में दृष्टि में महान् अन्तर हो गया / / 40 // 30
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy