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________________ तुलनात्मक धम्मैविचार. के मनुष्यों जैसे माने हुए देवताओं की तो इस से भी अधिक अधोगति हुई हम देखते हैं। ___ इस प्रकार जब तक सब समाज यज्ञ क्रिया मिलकर कर सकता है तब तक तो मनुष्य निजू यज्ञ नहीं कर सकते थे और तब तक देवताओं का गौरव भी बना रहा था / परन्तु जबसे मनुष्य निजू यज्ञ करने लगे तबसे यज्ञ उनकी महत्वाकांक्षाओं को तृप्त करने का नहीं परन्तु उनकी इच्छाओं को तृप्त करने का साधन रूप गिना जाने लगा और इससे देवताओं का गौरव भी घट गया / तृतीय प्रकरण जादु. अ पने ऊपर आफतें अथवा दुःख आ पड़ें उनके * निवारण के लिए इष्ट देवताओं को प्रार्थना कर के तैयार रहने का कर्तव्य प्रत्येक समाज का है ऐसा सब जगह माना जाता है / जापान तथा याहूदिओं की तरह जहां देवताओं और मनुष्यों के बीच के संबंध को एक प्रतिज्ञारूप मानते हैं। वहां प्रतिज्ञा, समाज के किसी भी मनुष्य की नहीं, परन्तु सारे
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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