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________________ 52 यश. याहूदियों की प्रथम ऐसी ही स्थिती थी, परन्तु पीछे से जेरेमियाह, अकिल इत्यादि सिद्ध महात्माओं ने याहूदी पादरियों के उपदेशों के विरुद्ध उपदेश करना आरंभ किया। उन्होंने ऐसा उपदेश किया कि ईश्वर बकरियों तथा भेड़ों के बलिदान से प्रसन्न होता नहीं परन्तु उसकी आज्ञाओं के पालन करने से ही प्रसन्न होता है। और प्रत्येक मनुष्य स्वतंत्र रीति से ईश्वर की पूजा कर सकता है। ऐसा उपदेश करने में कितने अंश में फलीभूत होने से व्यक्ति के स्वतंत्र धर्म की जो भावना अब तक अशक्य मानी जाती थी वह शक्य मानी गई और सार्वजनिक यज्ञों की क्रिया का प्रचार रुका / परन्तु इससे विशेष वह कुछ कर न सके / धर्माचुस्त याहूदी प्रजा में पशु यज्ञ, सुन्नत और खाने पीने का निषेध तो प्रचलित ही रहा / इस प्रकार दुनिया के सब धर्मों से ब्राह्मण धर्म और याहूदी धर्मों में धर्म गुरुओं की प्राबल्यता से फैले हुए यज्ञ क्रिया के विस्तार को रोकने की नवीन प्रवृत्तिएं खड़ी हुई यह देखने में आती हैं। यज्ञ क्रिया को धार्मिक जीवन का साधनरूप न मानने वाली ऐसी प्रवृत्तियों में से दुनियां के दो बड़े ज़बरदस्त बौद्ध और ईसाई धर्मों का जन्म होने से उन को हम धार्मिकोन्नति करनेवाली प्रवृत्ति मानेंगे / परन्तु इस प्रकार उत्पन्न हुए दोनो धर्मों को अन्तमें अपने उत्पत्तिस्थान को छोड़ना पड़ा और वह धम्मोपैदशक होकर अपने कार्य कर सके हैं / ' धार्मिकसमाज को अपने अस्तित्व के लिए एक
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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