SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना. से किसी मनुष्य के अभिचार कर्म को ही एक व्यक्ति की बीमारी अथवा मरण का निमित्त गिनने में आता है। ऐसा मनुष्य अपने खास प्रगट रूप वर्ताव अथवा गुण पर से पहचाना पहचाना जाता है और ऐसा मनुष्य ही अनर्थ करने के लिए शक्तिमान् और इच्छा करने वाला हो सकता है यह समाज मानता है / अपने अन्दरही अनर्थ करने की शक्ति है ऐसी सूचना मिलने पर स्वयम् ही ताकत रखता है ऐसा मानने तथा वैसे ही अजमाने का प्रयत्न करने के लिए वह मनुष्य प्रवृत्त हो यह संभव है / वह अपनी ताकत अनेक प्रकार से अजमाने के लिए तय्यार होता है और उसने अपनी ताकत का उपयोग करना शुरु किया है ऐसा समाज ख्याल करता है। बहुत करके वह मनुष्यों पर अपनी ताकत अजमाता है ऐसा पहले माना जाता है / तत्पश्चात् मनुष्य अतिरिक्त अन्य व्यक्तिओं पर भी अपनी शक्ति चलाने के लिए वह दूसरा कदम उठाता है / अशुर्बनीपाल के पुस्तकालयमें से एक पश्चाताप कीर्तन में एक बैबिलोनी भक्त अपनी सहायता के लिए बुलाए हुए जादुगर की निष्फलता विषयक अपने देवता से फर्याद कर कहता है / कि " जादुगरने जादु द्वारा मेरी आफत दूर नहीं की, टूना बाज मेरी बीमारी का इलाज करने में सफल नहीं हुआ तथा धर्मगुरु भी मेरे दुःखको मिटा नहीं सका" / पुराने मिसर में जिस प्रकार अभिचार कर्मों और उनके प्रतिकारों ने प्रजा के धर्म में अपना पद प्राप्त किया था
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy