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________________ 104 एकेश्वर वाद. व्यक्ति की गणना करने का अवकाश ही नहीं रहता कारण कि उस धर्म में दिव्य व्यक्ति को ही समाज के हित के साधन रूप माना होता है / ईसाई धर्म के एकेश्वरवाद में मनुष्य व्यक्ति को समाजहित का साधनरूप केवल न मानकर मनुष्य व्यक्ति के हित को भी स्थान मिला हुआ है / ईश्वर प्रेममय है, इसका कारण या तो कल्पना अथवा दृढ़ विश्वास है। एक व्यक्ति प्रेम का विषय भी हो और स्वयं विषय हो ऐसी कल्पना से मनुष्य और दिव्य व्यक्ति का गौरव बढ़ जाता है और व्यक्ति केवल साधनरूप न मानकर स्वतंत्र भी माना जाता है। ईश्वर के मनुष्य पर प्रेम की तथा मनुष्य का अपने पड़ोसी तथा ईश्वर के प्रेम की ईसाई धर्म में ऐसी भावना की गई है कि उस भावना से व्यक्ति समाज और ईश्वर पूजा का वास्तविक अर्थ ईसाई धर्मानुयायी को ठीक समझ में आता है। मनुष्य का ईश्वर के साथ का संबंध अर्थात् धर्म की ऐसी भावना किसी भी स्थान पर देखने में नहीं आती इससे हम तत्वज्ञान की दृष्टि से ऐसा कह सकेंगे कि यह भावना बिलकुल नई है / मनुष्यों का ईश्वर के साथ कैसा संबंध है इस’ प्रश्न का निर्णय करने में जिन प्रयोगों की योजना अपने अपने समय में मनुष्योंने की है उन प्रयोगों के लिए इस भावना के कारण नई दिशा खुली है / हम ऐसा भी कह सकते हैं ईसाई धर्म मानता है ऐसे प्रेम का बल भी एक नया ही बल है / प्रेम शब्द का जो अर्थ ईसाई धर्म में किया गया है उसी अर्थ में प्रेम एक नए
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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