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________________ 113 तुलनात्मक धर्माधिचार. धर्म मनुष्य की धर्म जिज्ञासा को तृप्त करने में समर्थ नहीं इसमें कोई सन्देह नहीं / इसी लिए वह भूमि बीज बोए जाने के लिए तय्यार थी परन्तु इस पर से बीज के गुण धर्म समझ में नहीं आ सकते यह समझने लिए हमें इतना मानना पड़ेगा कि बौद्ध धर्म का बोध व्यवहारिक था और मनुष्यों को लक्ष्य में रख कर किया गया था। ___ दुःख क्या है ! और कैसे उत्पन्न हुआ आर मनुष्य उसमें से कैसे छूट सकता है ! यह प्रश्न व्यवहारिक है और प्रत्येक के लिए है / जो मनुष्य निवृत्तिपरायण ही हों और प्रवृत्यात्मक वृत्तियों से विमुख हों, वैसे ही उनमें केवल दुःख सहन करने की शक्ति हो और दुःखों के निवारण करने में अशक्त हों तो ही ऊपर के प्रश्नों के संतोषकारक उत्तरसे उनका समाधान हो, और बौद्ध धर्म विश्व व्यापक धर्म बन सके। जहां केवल यह प्रश्न व्यवहारिक व्यक्तिगत प्रश्न माने गए हैं वहां लोगोंने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया है / वह हिंदुस्थान के पूर्व भाग में फैला है परन्तु पश्चिम की ओर उसका प्रचार नहीं हो सका / हिंदुस्थान के लोगों की संसार चक्र में अर्थात् पुनर्जन्म में श्रद्धा होने से मनुष्य दुःख में से किस प्रकार मुक्त हो सकता है यह प्रश्न वहां अधिक महत्व पूर्ण माना जाता था। पुनर्जन्म के सिद्धान्तानुसार मृत्यु होने से मनुष्य दुःख में से छूट नहीं सकता कारण कि मनुष्य को पुनःजन्म लेना पड़ता है अबैर जन्म कभी पशु योनि में भी लेना पड़े और
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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