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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 105 है उतना ही दुख और दैवों का अंग्रमइन्यु' अथवा दुष्ट शक्ति के साथ संबंध है। गाथाएं और अर्वाचीन अवस्ता के विभागों में किसी भी कारण से भेद हुआ हो तो भी जब अंगमइन्यु अथवा दुष्ट शक्ति को बहुत काल बाद गुण धर्म वाले मूर्त रूप में अहिमान के रूप में स्वीकार किया गया है तब उसी प्रकार -- स्पेन्तमइन्यू' अथवा भ्रम शक्ति को भी कुछ सय बाद गुणधर्म वाला मूर्त स्वरूप में अहुरमझद के रूप में स्वीकार किया होगा और प्रथम अहुरमझद को स्वतंत्र व्यक्तिरूप में गिना नहीं जाता होगा। विश्व के संबंध में जरथुस्त्र की ऐसी कल्पना है कि वह शुभ शक्तियों और दुष्ट शक्तियों के तथा पवित्रता और अपवित्रता के तथा जीवन और मरण की युद्ध के रंगभूमि है। यद्यपि यह द्वंद्ववाद सृष्टिक्रम में मात्र उपरि ही है तोभी अंत में सत्य और न्याय की विजय होगी, सब प्रकार की अपवित्रता का नाश होगा और नया स्वर्ग और नई पृथिवा रची जाएगी। जरथुस्त्रने अहुर मजद शब्द विशेष नाम के रूप में वर्ता नहीं है। पारसी मझद का अर्थ प्रज्ञा होता है उस के आगे अहुर रखने से अहुरमझद अर्थात् प्रज्ञा सर्वेश्वरी है ऐसे सूचित किया जाता है / अहुरमझद केवल पवित्रता, विशुद्धता और न्याय की मूर्ति है। यह न्याय अच्छे बुरे कर्मों का फलरूप है। फिर जरथुस्त्र के मतानुसार अन्तिम न्याय के दिन बुरे कम्मों का बुरा और अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलेगा / जरथुस्त्र
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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