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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. भारी पंडित श्रीयुत भगवानदास जी ने अभी 'स्वार्थ' नामी काशी के प्रसिद्ध मासिक में चातुर्वण्य पर एक निबन्ध लिखते हुए भी तर्क से अनुसन्धान करने के नियम को स्वीकार किया है। अतः हम कह सकते हैं कि वेद के किसी शब्द अथवा मंत्र के अर्थ सृष्टि नियम के विरुद्ध नहीं हो सकते / बलिदानों कि कल्पना वैदिक नहीं है / स्वयं यजुर्वेद के पहले मंत्र में श्रेष्ठतम कर्म ' * को ही यज्ञ दर्शाया है / इसी मंत्र में पशुरक्षा का इतना स्पष्ट विधान है, कि उसका दूसरा अर्थ हो ही नहीं सकता यथा पशून पाहि अर्थात् पशुओं की रक्षा करो / हर्ष का विषय है कि युरोप के निष्पक्ष पंडित भी प्रोफेसर मैक्समूलर आदि, ऋषियों के पुराने अर्थों की पुष्टि में स्पष्ट लिख रहे हैं कि प्राचीन काल में यज्ञ में पशु बलिदान नहीं होते थे। यह बात प्रोफेसर मैक्समूलर ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ फिजीकल बेसिज़ आफ रिलीजन में लिखी है कि यज्ञ शब्द के अर्थ कार्य वा कर्म के हैं पशु बलिदान के नहीं। एक और विद्वान् कोलबुक इस विषय में इस प्रकार लिखते हैं जिससे सिद्ध हो जायगा कि अश्वमेधादि यज्ञों में हिंसा नहीं होती थी। "The Ashwamedha and Purushmedha cele. brated in the manner directed by this Yajurveda are not really sacrifices of horses & men." * देखो संस्कारचंद्रिका अर्थात् 16 संस्कारों की व्याख्या प्रकाशक जयदेव ब्रदर्स बड़ौदा
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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