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________________ 973 गणपाठः] हैमपञ्चपाठी. विपाश्पाठः कुआदिलक्षणेन जायन्येन समावेशार्थः / वैपाशः / वैपाशायन्यः / तक्षन्पाठः कुर्वादिब्येन समावेशार्थः / ताक्ष्णः / ताक्षण्यः / 1166 शुभ्रादिभ्यः // 6 / 1 / 73 // शुभ्र / विष्टपुर / विष्टपर। ब्रह्मकृत / शतद्वार / शताहार / शालाघल / किट / (टीक) शालूक / कृकलास / प्रवाहण / भाण / भारत / कुदत्त / कर्पर। इतर / अन्यतर / आलीढ / सदत्त / सुदक्ष / तुद / अकशाप / वादन / शतल / शकल / (शक) शवल / खडूर / कुशम्ब / शुक्र / विग्र / बीज / अश्व / बीजाश्व / अजिर / मवक / मखण्डु / मकष्टु / मघष्टु / सृकण्डु / मृकण्डु / जिह्माशिन् / अजवस्ति / शकन्धि / परिधि / अणीचि / कणीचि / शकुनि / अतिथि / अनुदृष्टि / शलाकाधू / लेखाधू / रोहिणी / रुक्मिणी / किकशा। विवशा / गन्धपिङ्गला। षडोन्मत्ता। कुमारिका / कुबेरिका / अम्बिका। अशोका / श्वन् / गङ्गा / पाण्डु / विमातृ / विधवा / कद्रू / गोधा / सुदामन् / सुनामन् / इति शुभ्रादयः / मवकान्तानामिञोऽपवाद पयण मखण्ड्वादीनां विमात्रन्तानामणः विधवाया एरणः कद्रूगोधयोश्चतुष्पादेयत्रः / मुदामन्सुनाम्नोरिजा शुभ्रस्य तु ज्येन समावेशार्थः पाठः। बहुवचनमाकृतिगणार्थम् / 1172 कल्याणादेरिन् चान्तस्य // 6 / 1177 // कल्याणो। सुभगा। दुर्भगा। बन्धकी। जरती। बलीवर्दी / ज्येष्ठा / कनिष्ठा / मध्यमा / परस्त्री / अनुदृष्टि / अनुसृष्टि / इति कल्याण्यादिः / परस्त्र्यन्तानां 'उज्याप्त्यूङः' इति अनुदृष्टेः 'शुभ्रादिभ्यः' इति एयण सिद्ध एव इनादेशमात्रं विधीयते / अनुसृष्टेरुभयम् / 1174 अनुशतिकादीनाम् // 4 // 27 // अनुशतिक / अनुहोड। अनुसंवत्सर / अनुसंवरण / अनुरहत् / अगारवेणु। असिहत्या। अश्वि(स्य) हत्य। अस्यहेति / अस्यहेतु / अनिषाद / अधेनु / कृरुरुत / कुरुपञ्चाल / अधिदेव / अधिभूत / इहलोक / परलोक / सर्वलोक / सर्वपुरुष / सर्वभूमि / वध्योग / प्रयोग / अभिगम। परस्त्री। पष्करसद / उदकशद्ध / सत्रनड / चतर्विद्या। शातकम्भ। सुखशयन / इत्यनुशतिकादिः। आकृतिगणोऽयम / तेन राजपौरुष्यादयष्टयणन्ता अत्रैव पठ्यन्ते। राजपौरुष्यम् / पारिमाण्डल्यम् / प्रातिभाव्यम् / सार्ववैद्यम् / प्रत्ययान्तरे त्वादेरेव वृद्धिः / राजपुरुषस्यापत्यं राजपुरुषायणिः / 1181 गृष्टयादेः // 6 // 84 // गृष्टि। हृष्टि / हलि। वालि / विधि / कुद्रि / अजवस्ति / मित्रयु इति गृष्टयादिः / 1184 यस्कादेोत्रे // 6 // 1 // 125 // यस्क / लय / द्रुह्य / अयस्थूण। तृणकर्ण / भलन्दन एभ्यः शिवाद्यणो लुप् / खरप-अस्मानडाद्यायनणः / भडिल / भण्डिल / भडित। भण्डित-एभ्योऽश्वाद्यायनञः। सदामत्त। कम्बलहार। पांढक / कर्णाढक। पिण्डीजङ्घ / बकसक्थ। रक्षोमुख / जङ्घारथ / उत्काश। कदुमन्थ / कदुकमन्थ / विषपुट / निकष / (किषक ) कषक / उपरिमेखल / कडम / कृश / पटाक /
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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