________________ वादयः] सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. 527 निष्यन्दते निःस्यन्दते वा तैलम् / अभिष्यन्दते। अभिस्यन्दते / अनुष्यन्दते। अनुस्यन्दते। परिष्यन्दते। परिस्यन्दते / निष्यन्दते। निस्यन्दते। विष्यन्दते / विस्यन्दते। शनिर्देशाद् यलुपि न भवति। निरभ्यनोश्चेति किम् / अतिस्यन्दते तैलम् / अप्राणिनीति किम् / परिस्यन्दते मत्स्य उदके / पर्युदासोऽयं न प्रसज्यप्रतिषेधः / तेन पत्र प्राणी चापाणी कर्ता भवति तत्रापाण्याश्रयो विकल्पो भवति न तु प्राण्याश्रयः प्रतिषेधः। अनुष्यन्देते अनुस्यन्देते वा मत्स्योदके। निनिभ्यां नेच्छन्त्येके / वृध्रङ् वृद्धौ // 21 // वर्धते / अवृधत् / अवर्धिष्ट / वडधे / वर्धिष्यते / वय॑ति / शृधृङ् शब्दकुत्सायाम् // 22 // वृधूवत् / कृपौङ् सामर्थ्य // 23 // 2.1 कर ललं कृपोऽकृपीटादिषु / / 2 / 3 / 99 // कृपेर्धातोकारस्य लुकारो रेफस्य च लकार आदेशः स्यात् स चेत् कृपिः कृपीटादिविषयो न भवति / कल्पते। अक्लपत् / अकल्पिष्ट। अक्लुप्त / चक्लपे। चक्लपिषे। चक्लप्से। क्लूपिषीष्ट / क्लप्सीष्ट / 202 कृपः श्वस्तन्याम् // 33 // 46 // कृपेः श्वस्तन्यां विषये कर्तर्यात्मनेपदं वा स्यात् / कल्पिता। कल्प्ता। कल्पितासे / कल्प्तासे / परस्मैपदविषये न वृद्भय इतीनिषेधात् / कल्प्ता / कल्प्तासि / कल्पिष्यते / कल्प्स्यते / कल्प्स्यति / अकल्पिष्यत / अकल्प्स्यत / अकल्प्स्यत् / // इति द्युतादिः // // अथ भ्वादिषु ज्वलादयः / / घ्यल दीप्तौ // 1 // शेषादिति परस्मैपदे ज्वलति / कुच संपर्चनकौटिल्यपतिष्टम्भविलेखनेषु // 2 // संपर्चनं मिश्रता / विलेखनं कषणम् / पल पथे गतौ // 4 // पतति / - 203 श्वयत्यसूचचपतः श्वास्थवोचपप्तम् // 4 / 3 / 103 // श्वयति असू पन् पत् इत्येत्तेषामङि परे श्व अस्थ वोच पप्त इत्येते आदेशाः स्युः। सृदिखाद अपतत् / पथति / अपथीत् / कथे निष्पाके // 5 // मथे विलोडने // 6 // पलं