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________________ 136 जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा आचार्य प्रभाचन्द्र के अनुसार ऋजु स्पष्ट रूप वर्तमान मात्र क्षण को, पर्याय को जानने वाला ऋजुसूत्रनय है। जैसे इस समय सुख पर्याय है, इत्यादि / यहाँ अतीतादि द्रव्य सत् है, किन्तु उसकी अपेक्षा नहीं है, क्योंकि वर्तमान पर्याय में अतीत पर्याय तो नष्ट हो चुकने असम्भव है और अनागत पर्याय अभी उत्पन्न ही नहीं हुई है। इस तरह वर्तमान मात्र को विषय करने से लोक व्यवहार के लोप की आशंका भी नहीं करनी चाहिए, यहाँ केवल इसी नय का विषय बताया है। लोक व्यवहार तो सकल नयों के समुदाय से सम्पन्न होता है / 14 वादिदेवसूरि कहते हैं कि पदार्थ की वर्तमान क्षण में रहने वाली पर्याय को ही प्रधान रूप से विषय करने वाला अभिप्राय ऋजुसूत्र नय कहलाता है। जैसे-इस समय सुख रूप पर्याय है - इस वाक्य से सुख पर्याय की प्रधानता द्योतित की गयी है, सुख-पर्याय के आधारभूत द्रव्यजीव को गौण कर दिया गया है / 15 लघुअनन्तवीर्य (वि०१२वीं) के अनुसार प्रतिपक्ष की अपेक्षा रहित शुद्धपर्याय को ग्रहण करने वाला ऋजुसूत्रनय है / 16 मल्लिषेण का मानना है कि वस्तु की अतीत और अनागत पर्यायों को छोड़कर वर्तमान क्षण की पर्यायों को जानना ऋजुसूत्रनय का विषय है / वस्तु की अतीत पर्याय नष्ट हो जाती है और अनागत पर्याय उत्पन्न नहीं होती, इसलिए अतीत और अनागत पर्याय खरविषाण की तरह सम्पूर्ण सामर्थ्य रहित होकर कोई अर्थक्रिया नहीं कर सकती, इसलिए अवस्तु है, क्योंकि "अर्थक्रिया करने वाला ही वास्तव में सत् कहा जाता है / " वर्तमान क्षण में विद्यमान वस्तु से ही समस्त अर्थक्रिया हो सकती है, इसलिए यथार्थ में वही सत् है / अतएव वस्तु का स्वरूप निरंश मानना चाहिए, क्योंकि वस्तु को अंश सहित मानना युक्ति से सिद्ध नहीं होता / शंका-वस्तु के अनेक स्वभाव माने बिना वह अनेक अवयवों में नहीं रह सकती, इसलिए वस्तु में अनेक स्वभाव मानने चाहिए / समाधान-यह ठीक नहीं है, क्योंकि यह मानने में विरोध आता है तथापि एक और अनेक परस्पर विरोध होने से एक स्वभाव वाली वस्तु में अनेक स्वभाव और अनेक स्वभाव-वाली वस्तु में एक स्वभाव नहीं बन सकते / अतएव अपने स्वरूप में स्थित परमाणु ही परस्पर के संयोग से कथंचित् समूह रूप होकर सम्पूर्ण कार्यों में प्रवृत्त होते हैं। इसलिए ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा स्थूल रूप धारण न करने वाले स्वरूप में स्थित परमाणु ही यथार्थ में सत् कहे जा सकते हैं / अतएव ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा निज-स्वरूप वस्तु है, पर-स्वरूप को अनुपयोगी होने के कारण वस्तु नहीं कह सकते / 17 मल्लिषेण ने स्याद्वादमंजरी में एक श्लोक उद्धृत किया है, जिसमें कहा गया है कि स्थिति-ध्रौव्य का अभाव(गौणत्व) होने से, केवल नश्वर पर्याय का सद्भाव होने के कारण, अर्थक्रियाकारी होने से पारमार्थिक पर्याय का आश्रयी ऋजुसूत्रनय होता है / 18 उपाध्याय यशोविजय के अनुसार ऋजु अर्थात् सिर्फ वर्तमानकालवर्ती पर्याय को मान्य करने वाला अभिप्राय ऋजुसूत्रनय है, यथा- इस समय सुख पर्याय है। यहाँ क्षणस्थायी सुख नामक पर्याय को प्रधान माना गया है, किन्तु उसके आधार आत्मद्रव्य को गौण कर दिया है, अतः विवक्षित नहीं किया गया है।१९
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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