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________________ 210 कल्पलताविवेक प्रा 58964 / 85164 / 85264 / 85964 / औपच्छन्दसक एव चतुर्णा योगे षट् / 1273 / 1973 / 2173 / 2973 / 9173 / 9273 / आपातलिकायां च चतुर्णा योगे सप्तभिः प्राच्यवृत्तिभिः सह त्रयोदश / 1283 / 1983 / 2183 / 2983 / प्रा 5783 / प्रा 7341 / प्रा 7342 / प्रा 7348 / प्रा 7349 / प्रा 7583 / 5 प्रा 7683 / 9183 / 9283 / पञ्चानां योगे सप्तभिः प्राच्यवृत्तिभिः सह चतुश्चत्वारिंशत् / 15642 / 15648 / 15649 / 18642 / 18649 / 25641 / 25648 / 25649 / 28641 / 28649 / प्रा 46583 / 56142 / 56148 / 56149 / 56241 / 56248 / 56249 / 56483 / 56941 / 56942 / 56948 / प्रा 58142 / प्रा 58149 / प्रा 58241 / 10 प्रा 58249 / प्रा 58941 / प्रा 58942 / 85142 / 85149 / 85241 / 85249 / 85941 / 85942 / 86142 / 86149 / 86241 / 86249 / 86941 / 86942 / 95641 / 95642 / 95648 / 98641 / 98642 / तृतीयस्मिन् वैतालीयोदीच्यवृत्तौ चतुर्णा योगे द्वौ / 6574 / 6587 / औपच्छन्दसके एकयोदीच्यवृत्त्या सह षोडश / 1263 / 1473 / 1963 / 2163 / 2473 / 15 2963 / 4173 / 4273 / 4973 / 5673 / उ 6573 / 8573 / 8673 / 9163 / 9263 / 9473 / आपातलिकायामुदीच्यवृत्तिपञ्चकेन साकमेकत्रिंशत् सम्भवन्ति / 1248 / 1249 / 1483 / 1942 / 1948 / 2148 / 2149 / 2483 / 2941 / 2948 / 4183 / 4283 / 4983 / 5341 / 5342 / 5348 / 5349 / 5683 / उ 6341 / उ 6342 / उ 6348 / उ 6349 / 20 उ 6583 / 8341 / 8342 / 8349 / 9142 / 9148 / 9241 / 9248 / 9483 / ते परिगणनमभिमतं विहन्युरिति नेष्टाः। अयुजि चाष्टमात्राणां युजि च षण्मात्राणामसम्भव इति तद्विकल्पकल्पनैवायासकरीति समवस्थितेषु प्रतिपादविकल्पेत्तरोत्तरमाहतेषु लक्षत्रयं षष्टिसहस्रसमन्वितं श्लोकतर्णकाः समुत्पद्यन्ते / प्रस्तारादिपरिज्ञानार्थं च पूर्ववदेव प्रतिपादविकल्पेष्वधोऽधःक्रमेणाग्रतोऽग्रनश्च 25 पक्तिभिविन्यस्तेषु प्रथमपादविकल्पे प्रथमे एकं द्वितीये द्वावेवं पञ्चविंशे पञ्चविंशतिं यावत् / द्वितीयपादविकल्पे प्रथमे शून्यं द्वितीये पञ्चविंशति तृतीये पञ्चाशतमेवं चतुर्विशे पञ्चसप्तत्यधिकानि पञ्च शतानि यावत् / तृतीयपादविकल्पे प्रथमे शून्यं द्वितीये षट् शतानि तृतीये द्वादशशतान्येवं पञ्चविंशशतचतुष्टयाधिकानि चतुर्दश सहस्राणि यावत् / चतुर्थपादविकल्पे 1. विषमे // 2. समे //
SR No.032756
Book TitleKalplata Vivek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMurari Lal Nagar, Harishankar Shastry
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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