________________ मद्वि० 128] काव्यशिक्षा कुतपो भागिनेये स्यादष्टमांशे दिनस्य च / पच० प्राप्तरूपो बुधे रम्ये व्यतिरूपे सुरूपवत् // 196 // फद्वि० रेफो रवणे कथितः कुत्सितेऽवाच्यवत् पुनः / बद्वि० कम्बुः शम्बूक-गजयोर्नीचो(चे)ऽनलक-शङ्खयोः // 17 // 5 बत्रि०- कदम्बमाहुः सिद्धार्थे नीपे च निकुरम्बके / प्रलम्बो दैत्यभेदे स्याद् गन्धर्वो मृग-देवयोः // 198 // बच० शतपर्वा च दूर्वायां भार्गवस्य स्त्रियामपि / भद्वि०-- रम्भा कदल्यप्सरसो रम्भो वैणवदण्डके // 199 // सभा सामाजिके द्यूते गोष्ठी-मन्दिरयोरपि / 10 भत्रि सुरभिश्चम्पके स्वर्णे जातीफल-वसन्तयोः // 20 // दमस्तु दमथे दण्डे कर्दमे दमनेऽपि च / / रमा लक्ष्म्यां' रमः कान्ते रक्ताशोकद्रुमे स्मरे // 201 // लक्ष्मीः श्रीरिव सम्पत्ति-पद्म-शोभा-प्रियङ्गुषु / मत्रि० मध्यमः स्यात् स्वरे मध्ये मध्यदेशे तु मध्यजे // 202 // 15 मच० पराक्रमो विक्रम स्यात् सामोद्योगयोरपि / यद्वि० जयो जयन्ते विजये जया दुर्गा-ऽग्निमन्थयोः // 203 // पधं श्लोके सृतौ पद्या पद्यः शूद्रे निगद्यते / यत्रि० विजयस्तु जये पार्थे गौर्यां तु विजया तिथौ // 204 // यच - भवेदनुशयो द्वेषे पश्चात्तापानुबन्धयोः / रौह(हि)णेयो भवेद् वत्से रेवतीरमणे बुधे // 205 // यप० कालानुसार्य काये शैलेये शिंशपाद्रुमे / रद्वि० अरं शीघे च चक्राङ्गे [ऽयं पुरः प्रथमेऽधिके ] // 206 // करो वर्षोपले पाणौ शुण्डा-प्रत्यय-रश्मिषु / पुरं पुरि शरीरे च गुग्गुलौ कथितः पुरः // 207 // 1. प्रतौ तु 'रमः कान्ते रमा लक्ष्म्यां' इति पाठः / 2. प्रतौ तु 'विक्रमेऽपि स्यात्' इति पाठः / 30