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________________ [113 अनेकार्थशब्दसंग्रहपरिच्छेदः। अट्टो हट्टा-इट्टालकयो शे चतुष्क-भक्तयोः / काण्डो नालेऽधमे वर्ग द्रुस्कन्धेऽवसरे शरे // 24 // सह-श्लाघा-ऽम्बुषु स्तम्बे क्रीडा केल्यामनादरे / गुडः कुञ्जरसन्नाहे गोलकेक्षुविकारयोः // 25 // भाण्डं मूलवणिरवित्ते तुरङ्गाणां च मण्डने / नदीकूलद्वयीमध्ये भूषणे भाजनेऽपि च // 26 // ऊर्णा भ्रमध्यगावर्ते मेषादीनां च लोमनि / ऋणं देये जले दुर्गे कणो धान्यांश-लेशयोः // 27 // कणा जीरक-पिप्पल्योः कर्णश्चम्पापतौ श्रुतौ / क्षणः कालविशेषे स्यात् पर्वण्यवसरे महे // 28 // कृष्णा तु नील्यां द्रौपद्यां पिप्पली-द्राक्षयोरपि / जिनेन्द्र-पूज्ययोरर्हत् कान्ता प्रियङ्गु-योषितोः // 29 // कीर्तिर्यशसि विस्तारे प्रासादे कर्दमेऽपि च / कृतं पर्याप्त-युगयोः केतुर्युति-पताकयोः // 30 // पितृ-सगोत्रयोऑतिस्तिक्तश्च सुरभौ रसे / धृतिर्योगविशेषे स्याद्धारणा-धैर्ययोः सुखे // 31 // संतोषा-ऽध्वरयोश्चापि पक्तिर्गौरव-पाकयोः / पूर्त पूरितखाताधोप॑तिर्वरण-वाटयोः // 32 // सूतः पारद-सारथ्योर्गाथा वाग्भेद-वृत्तयोः / तीर्थ शास्त्रे गुरौ यज्ञे पुण्यक्षेत्रा-ऽवतारयोः // 33 // ऋषिजुष्टे जले सत्रिण्युपाये स्त्रीरजस्यपि / योनौ पात्रे दर्शनेषु [पीथोऽर्के पीथमम्बुनि] // 34 // रथस्तु स्यन्दने पादे शरीरे वेतसद्रुमे / छन्दो वशेऽभिप्राये च भसद्धास्वर-मांसयोः // 35 //
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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