SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 58 ) दसवां अध्याय इस अध्याय में जैमिनियों ने प्राणी के जन्म और मृत्यु के सम्बन्ध में प्रश्न किया है और उसके उत्तर में पक्षियों ने उन्हें एक कथा सुनायी है, जो इस प्रकार है पूर्व काल में भार्गव नाम के एक ब्राह्मण थे / उन्होंने अपने सुमति नामक पुत्र का उपनयन संस्कार करके उपदेश दिया कि उसे ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और सन्न्यास-इन चार श्राश्रमों में क्रम से प्रवेश करना चाहिये / उन आश्रमों के कर्तव्यों का पालन करने से अन्त में उसे ब्रह्मप्राप्ति होगी। इस उपदेश को सुन कर पुत्र ने कहा कि उसे अपने अनेक जन्मों का स्मरण है। उसने न जाने कितनी बार वेदाध्ययन तथा अाश्रमधर्मों का पालन किया है, पर उससे कुछ लाभ न हुा / वह मार्ग तो प्रवृत्ति का मार्ग है। उस मार्ग को ग्रहण करने पर मनुष्य को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति नहीं मिल सकती / अतः अब वह उस मार्ग पर नहीं जायगा | वह तो उस परम तत्त्वज्ञान को श्रायत्त करेगा जिसके निकट वह पूर्व जन्मों के अभ्यास से पहुँच गया है और जिसे पूर्णतया अायत्त कर लेने पर मनुष्य को निश्चित रूप से मोक्ष की प्राप्ति होती है / . इसी प्रसङ्ग में जन्म-मृत्यु के चक्र की दुःखरूपता और दुस्तरता बताने के उद्देश्य से सुमति ने कर्मफल की अनिवार्यता और विचित्रता का विस्तृत वर्णन किया है, जो सैंतालीसवें श्लोक से अध्याय के अन्त तक प्रसृत है। इस प्रकरण के अध्ययन से ये बातें अवगत की जा सकती हैं कि मृत्यु किस प्रकार होती है / किस प्रकार के प्राचरण एवं जीवन से मनुष्य को सुखमृत्यु प्राप्त होती है तथा किस प्रकार के आचरण और जीवन से दुःखमृत्यु प्राप्त होती है। रौरवनामक नरक कितना विशाल और भीषण है / किस प्रकार के दुष्कर्मी इस नरक में जाते हैं और उन्हें कौन सी वेदनाये तथा यातनायें भोगनी पड़ती हैं / नरक से निकलने पर किन किन योनियों से होकर जीव मनुष्ययोनि में जन्म प्राप्त करता है। स्वर्ग और मृत्यु लोक में पुण्यकर्मा मनुष्यों का यातायात किस प्रकार होता है। ग्यारहवां अध्याय इस अध्याय में ये बातें बतायी गयी हैं कि माता के गर्भ में जीव के नवीन शरीर की रचना का प्रारम्भ होकर उसका विकास किस प्रकार होता है तथा उसमें जीव का सम्बन्ध कब और कैसे घटित होता है / गर्भ के भीतर शरीर की रक्षा कैसे होती है / गर्भस्थ जीव की मनोदशा क्या होती है | किस प्रकार
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy