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________________ ( 43 ) विस्तृत तथा विपुलकाय है / इसकी संक्षिप्त चर्चा भी इस लघुकाय लेख में संभव नहीं है / इसका अध्ययन तो पुराणों से ही करना चाहिए / इसकी समुचित जानकारी वहीं प्राप्त होगी। यहाँ इतना ही बता देना पर्याप्त है कि वंशानुचरित का अध्ययन जीवननिर्माण के लिये बहुत उपयोगी है / यह कहानियों के समान केवल मनोरञ्जन का साधन मात्र नहीं है। विभिन्न समयों के वंशानुचरित का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि किन समयों में किन वंशों की स्थापना किस प्रकार हुई / उनका विस्तार किस प्रकार हुअा। उनके शासन का स्थापन, उत्थान, तथा पतन कैसे हुआ। उनका विधान एवं उनके जीवन का क्रम क्या था / उनकी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा प्राध्यात्मिक गतिविधि क्या थी। उनके जीवन और व्यवहार का दृष्टिकोण क्या था / उनका भौतिक विज्ञान किस स्तर का था। राजा और प्रजा के सम्बन्ध कैसे थे। शिल्य, कला, विद्या, व्यवसाय की स्थिति, उनकी रूपरेखा और उनकी प्रसारपद्धति क्या थी। स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय और जीविका के साधनों की सुलभता वा दुर्लभता किम्मूलक थी। स्त्रीवर्ग की शिक्षा, दीक्षा, उनका कार्यक्षेत्र, समाज में उनका स्थान, बाह्य विषयों में उनका योगदान, तथा पुरुष के साथ उनका सम्बन्ध कैसा था / वंशानुचरित के अध्ययन से इन सब बातों का पता विस्तार के साथ लगता है। पुरातन काल की इन सब बातों की जानकारी से अनेक लाभ होते हैं / उनकी त्रुटियां और उन त्रुटियों के कुफल जानकर उनसे बचने तथा उनके गुण और उन गुणों के रमणीय परिणाम जानकर उनके ग्रहण का प्रयत्न किया जा सकता है / पुराणों के वंशानुचरित के अध्ययन से यह एक बात तो स्पष्ट रूप से अवगत होती है कि भारतीय मानव का जीवन कभी एकाङ्गी नहीं रहा / उसकी दृष्टि के समक्ष जगत का भौतिक जीवन और आध्यात्मिक उत्थान दोनों समान रूप से प्रस्तुत थे | उसने कभी भी किसी एक ही को प्रमुखता देकर दूसरे की ओर से आँख नहीं मीची। भारत की पुरातन व्यवस्था में पग पग पर यह बात देखने को मिलती है कि अरण्यवासी, निरीह, निर्मम ऋषि भी समय समय पर देश की राजनीति में पूर्ण सहयोग करते तथा देश में निष्पक्ष, न्यायशील, सुव्यवस्थित शासन की स्थापना का आयोजन करते हैं। सर्वतन्त्रस्वतन्त्र, सुसम्पन्न, सुमहान् , सार्वभौम साम्राज्य के विलासपूर्ण वातावरण में जीवन व्यतीत करने वाले बड़े बड़े राजा को भी धर्म, सत्य एवं अध्यात्म के नाम पर राज्य को त्याग कर अरण्यवासी बनने में कभी कोई हिचक नहीं होती।
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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