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________________ ( 22 ) तेज को न्यन करें। तदनुसार सूर्यदेव ने अपनी इच्छा से अपने तेज के पन्द्रह भाग कम कर दिये और उसका केवल सोलहवां भाग ही अपने पास रखा / विश्वकर्मा ने उनके मुक्त तेज से अख आदि अनेक उपयोगी वस्तुवों का निर्माण कर दिया। तेज कम हो जाने पर सूर्यदेव अश्व का रूप धारण कर उत्तर कुरु में अश्वा-रूपिणी संशा के निकट गये। अश्वारूपिणी संज्ञा श्राते हुये अश्व को पर पुरुष समझ, सतीत्व-रक्षा को दृष्टि में रख पृष्ठ भाग का सम्पर्क बचाने के विचार से आगे बढ़ी। दोनों की नासिकावों का योग हुश्रा / उससे नासत्य एवं दस नाम के दो पुत्र पैदा हुये / अश्वरूपी सूर्य का जो द्रवद्रव्य कामाग्नि से पिघल कर पृथ्वी पर गिरा उससे रेवन्त नाम का एक पुत्र पैदा हुअा / सूर्यदेव ने कृत्रिम रूप त्याग कर अपना सच्चा रूप प्रकट किया। संज्ञा ने भी पति को पहचान कर उनकी प्रसन्नता के लिये बनावटी रूप छोड़ कर अपने सच्चे रूप को धारण कर लिया। दोनों प्रसन्न हो उठे। सूर्यदेव ने कृमियों द्वारा यम के शप्त पैर का कुछ मांस पृथ्वी में गिरवा छाया-संशा के शाप की पूर्ति कर पैर की रक्षा कर दी और उन्हें प्रजाजनों के धर्म-अधर्म का अधीक्षक तथा उनके दण्डव्यवस्था का अधिकारी बना दिया। यमुना उनके निर्देश से नदी बन कलिन्द के मध्य प्रवाहित हुई। अश्वारूपिणी संज्ञा से उत्पन्न दोनों कुमार पिता की अाशा से देवतावों के चिकित्सक हो अश्विनीकुमार नाम से प्रसिद्ध हुये और रेवन्त उन्हीं की आशा से गुह्यकों का राजा हुआ। छाया-संज्ञा का ज्येष्ठ पुत्र सावर्णिक नाम से ख्यात हुआ। दूसरा पुत्र शनैश्वर नाम का ग्रह बना और कन्या जिसका नाम तपती था, कुरु देश के राजा संवरण से व्याही गई। सूर्यदेव और संशादेवी का ज्येष्ठ पुत्र वैवस्वत अनेक विद्यावों में पारंगत, महाप्रतापी और बड़ा यशस्वी था। उसने मनु का पद प्राप्त किया। इस समय उसी का मन्वन्तर चल रहा है / आदित्य, वसु, रुद्र साध्य, विश्वेदेव, मरुत, भृगु और अङ्गिरा इस मन्वन्तर के देवगण हैं / ऊर्जस्वी इन्द्र हैं। अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र और जमदग्नि सप्तर्षि हैं / इक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, दिष्ट, करूष, पृषध्न और वसुमान वैवस्वत मनु के इन नव पुत्रों के वंश इस मन्वन्तर के राजवंश हैं / 8. सावर्णि___ सूर्यदेव से उत्पन्न छाया-संशा का ज्येष्ठ पुत्र अपने समान-पितृक ज्येष्ठ भ्राता वैवस्वत मनु के समान प्रतापी सावर्णि नाम का आठवां मनु होगा। सुतपा, अमिताभ और मुख्य इस मन्वन्तर के देवगण होंगे / विरोचन के पुत्र, पाताल
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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