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________________ प्राक्कथन संस्कृत - संस्कृत विश्व की अति प्राचीन और अत्यन्त समृद्ध भाषा है / इसके दो रूप हैं एक वैदिक और दूसरा लौकिक / वैदिक संस्कृत सदा एक सी रहती है, उसमें किसी नूतन संस्कार वा परिष्कार को मान्यता नहीं दी जाती, वह शाश्वत और सनातन मानी जाती है, इसी लिये उसे अलौकिक, अमानवीय वा अपौरुषेय कहा जाता है। लौकिक संस्कृत मनुष्यों के बोल-चाल की भाषा है। इसमें समय समय पर आवश्यक संस्कार और परिष्कार होते रहते हैं। शब्दों के त्याग और संग्रह से इसका कलेवर परिवर्तित होता रहता है। इसमें वेदों के पुरातन ज्ञान-विज्ञान की अवतारणा के साथ जगत् के नवीन ज्ञान-विज्ञान का भी सन्निवेश हुआ करता है। इसी कारण इसे लौकिक, व्यावहारिक वा मानवीय भाषा कहा जाता है। चिर अतीत काल में यह भारतवर्ष की सार्वजनिक भाषा रह चुकी है, राजभाषा तो यह निकट भूत तक रही। निर्माण और पाचन की अपूर्व क्षमता के कारण आज भी अतीत काल के अपने गौरवपूर्ण पद पर पुनः प्रतिष्ठित होने की अर्हता इसमें विद्यमान है। . पुराण लौकिक संस्कृत के विविध साहित्यों में पुराण का स्थान सर्वोपरि है। पद्मपुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा जी ने समस्त शास्त्रों में सर्वप्रथम पुराण का स्मरण किया। पुराण सम्पूर्ण लोकों में श्रेष्ठ तथा समग्र ज्ञान का प्रदाता * पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम् / उत्तमं सर्वलोकानां सर्वज्ञानोपपादकम् // (अ०१) मत्स्य पुराण में पुराणों को वेदों से पूर्ववर्ती बताया गया है पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम् / . अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः // (53-1) अथर्ववेद में कहा गया है कि उच्छिष्ट-ब्रह्म से वेदों के साथ पुराणों का आविर्भाव हुआ * ऋचः सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह / उच्छिष्टाजज्ञिरे सर्व दिवि देवा विपश्चितः // (11724)
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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