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________________ 1. निर्गुण भगवान् का जन्मग्रहण कैसे सम्भव हुअा ? 2. द्रौपदी पाँच पुरुषों की पत्नी कैसे हुई ? 3. बलदेव जी को तीर्थयात्रा के व्याज से ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त क्यों करना पड़ा? 4. द्रौपदी के पुत्र अविवाहित अवस्था में ही क्यों मार डाले गये ? मार्कण्डेय जी ने समयाभाव से स्वयं इन प्रश्नों के उत्तर न देकर तदर्थ जैमिनि को विन्ध्याचल पर रहनेवाले पिङ्गाक्ष, विबोध, सुमुख और सुपुत्र नाम के चार पक्षियों के पास भेज दिया। ये पक्षी उच्च कोटि के तत्त्वज्ञानी थे तथा मनुष्य की भाषा बोलने में प्रवीण थे, ये विपुलस्वान् मुनि के पौत्र थे, इनके पिता सुकृष ने पक्षी के रूप में आये इन्द्र का उनकी इच्छा के अनुसार नरमांस द्वारा अातिथ्य करने के लिये इन्हें देहत्याग करने की आज्ञा दी। जब इन लोगों ने प्राणरक्षा के लोभ से उनकी आज्ञा का पालन करने में असमर्थता प्रकट की तब उन्होंने कुपित हो इन लोगों को पक्षी की योनि में पैदा होने का शाप दे दिया। उसके अनुसार ये द्रोण की पत्नी ताी के गर्भ में आये / गर्भाधान से साढ़े तीन महीने बाद ताी कुरुक्षेत्र गई। दैववश वहाँ महाभारत के युद्ध के बीच उसे जाना पड़ा और अचानक एक भाले के आघात से उसका पेट फट गया। पेट फटते ही चार अण्डे भूमि पर गिर पड़े। संयोगवश ठीक उसी समय एक हाथी का घण्टा टूट कर इन अण्डों के ऊपर गिर पड़ा / उसी के नीचे ये अण्डे सुरक्षित पड़े रहे। एक दिन उधर से जाते हुये शमीक ऋषि ने घण्टे के नीचे से पक्षियों के बच्चों के जैसे कुछ शब्द सुने / कौतुकवश उन्होंने / घण्टा उठा दिया। उसके नीचे से उन चार पक्षिशावकों को अपने अाश्रम पर ले जा बड़े स्नेह से उन्हें पाला पोसा। जब वे सयाने' हुये तब ऋषि की: अनुमति से विन्ध्याचल जा वहीं रहकर तत्त्वानुचिन्तन करने लगे। ___ मार्कण्डेय जी के आदेश से जैमिनि ने इन पक्षियों के निकट जाकर अपने उक्त चार प्रश्नों के उत्तर पूछे / पक्षियों ने जैमिनि का सत्कार कर उनके प्रश्नों के उत्तर क्रमशः इस प्रकार दिये / पहले प्रश्न का उत्तर___परमात्मा की मुख्य दो मूर्तियाँ हैं, एक निर्गुण और दूसरी सगुण / निर्गुण मूर्ति एक, अद्वितीय, सर्वव्यापक, शुभ्र, ज्योतिर्मय, सदा एकरूप तथा सनातन है / सगुण मूर्ति गुण की विविधता के कारण तीन प्रकार की है / एक तमोगुणप्रधाना जो पृथ्वी को धारण करती है तथा 'शेष' नाम से प्रसिद्ध है। दूसरी सत्त्वगुणप्रधाना जो जगत की रक्षा एवं धर्म की व्यवस्था करती है तथा हरि वा विष्णु नाम से प्रसिद्ध है। तीसरी रजोगुणप्रधाना जो जगत की सृष्टि करती
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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