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________________ ( 145 ) राजकुमारी स्वयंवरण द्वारा दम की पत्नी हो चुकी, जो मोहवश इसके विपरीत आचरण करता है, वह कामासक्त है, अन्यायी है"। यह सुन कर दम अत्यन्त कुपित हो गया और अपनी नव पत्नी की रक्षा करने की प्रतिज्ञा कर विपक्षियों पर वाणों की वर्षा करने लगा। महानन्द और वपुष्मान् ने उससे साक्षात् मुठभेड़ की। उनके साथ बड़ी देर तक युद्ध किया। अन्त में वेतसपत्र नामक वाण से महानन्द का तो मस्तक काट डाला और वपुष्मान् को वाणों से बींध कर पृथ्वी पर गिरा दिया / पृथ्वी पर गिरते ही वह व्याकुल हो थर थर काँपने लगा तथा पुनः युद्ध न करने का निश्चय प्रकट किया / तब दम ने उसे जीवित ही छोड़ दिया और प्रसन्नतापूर्वक सुमना को अपने साथ कर लिया। चासवर्मा ने उन दोनों का विधिवत् विवाह कर दिया / दम दशार्ण नरेश से विदा...लेकर अपनी पत्नी के साथ घर लौटा और माता-पिता को प्रणाम कर सारा वृत्तान्त कह सुनाया। दशार्णनरेश को सम्बन्धी तथा अनेक राजाओं को अपने पुत्र से पराजित सुन कर नरिष्यन्त को बड़ी प्रसन्नना हुयी। कुछ समय बाद सुमना ने गर्भ धारण किया और नरिष्यन्त ने अपनी वृद्धावस्था को देख दम को राज्य दे अपनी पत्नी इन्दसेना के साथ तपस्या करने के लिये वन को प्रस्थान किया / एक सौ चौंतीसवां अध्याय एक दिन की बति है, नरिष्यन्त अपनी पत्नी के साथ वानप्रस्थ आश्रम में रह कर तपस्या कर रहा था, उसी समय संक्रन्दन का दुराचारी पुत्र वपुष्मान् थोड़ी सी सेना के साथ शिकार खेलने वहाँ पहुँचा / इन्द्रसेना से नरिष्यन्त का परिचय प्राप्त कर वपुष्मान् ने कहा-"यह मेरे शत्रु दम का पिता है, उसने युद्ध में मुझे परास्त कर मेरी सुमना को ले लिया है, अतः इसे मारकर मैं उस वैर का बदला चुकाना चाहता हूँ, अब पाकर वह अपने पिता की रक्षा करे"। उसका यह क्रूर वचन सुनकर इन्द्रसेना रोने लगी, उस दुष्ट ने नरिष्यन्त का वध कर दिया / उसके चले जाने पर इन्द्रसेना ने दम के पास एक शूद्र तपस्वी से यह सन्देश भेजा--"संक्रन्दन के पुत्र वपुष्मान् ने तुम्हारी शत्रुता के कारण तुम्हारे निरपराध तपस्वी पिता को मार. डाला है, इस सम्बन्ध में तपस्विनी होने के नाते मुझे कुछ नहीं कहना है, तुम अपने नीतिविद् मन्त्रियों से परामर्श कर जो उचित हो वह करो। विदूरथ ने एक यवन के हाथ अपने पिता का वध सुन कर सारे यवन कुल का नाश कर दिया था / 10 मा० पु०
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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