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________________ अवीक्षित का निश्चय सुनकर राजकन्या भी किसी अन्य से विवाह न करने का निश्चय कर तपस्या करने जंगल चली गयी। तीन मास तक निराहार रह कर तपस्या करने के बाद जब वह अत्यन्त कृश हो गयी तब उसने देहत्याग करने का विचार किया / उसी समय एक देवदूत ने आकर कहा-“देवि ! तुम्हारे तप के प्रभाव से तुम्हारे गर्भ से एक बड़ा वीर तेजस्वी, यशस्वी तथा, चन्द्रवर्ती पुत्र पैदा होनेवाला है अत: तुम देहत्याग करने का विचार छोड़ दो"। देवदूत के कथनानुसार उसने अपना विचार बदल दिया और अपने शरीर का पोषण प्रारम्भ कर दिया। एक दिन अवीक्षित को माता वीरा ने उससे कहा- "पुत्र ! मैं 'किमिच्छक' नाम का व्रत करना चाहती हूँ, इसके लिये तुम्हारे पिताकी अनुमति प्राप्त हो गई है, इसमें जोभी धन व्यय होगा उसे वे देंगे, शरीर का कष्ट मैं उठाऊगी, यदि तुम भी अपना सहयोग प्रदान करो और प्रतिज्ञा करो कि जो कुछ भी कार्यभार तुम्हारे ऊपर पड़ेगा, तुम्हारी इच्छा हो वा न हो, तुम उसे अवश्य सँभालोगे तो मैं इस उत्तम व्रत को कर डालू"। पुत्र ने माता की व्रतेच्छा पूर्ण करने के लिये माता की इच्छा के अनुसार प्रतिज्ञा कर ली। माता ने व्रतारम्भ कर दिया / इधर राजा करन्धम के मन्त्रिगण राजा से निवेदन कर रहे थे-"राजन्! आप अब वृद्ध हो चले, राजकुमार ने विवाह नहीं किया, इसका परिणाम यह होगा कि आप दोनों के बाद आप का यह विशाल राज्य आप के शत्रुओं के हाथ पड़ जायगा और वंश की परम्परा समाप्त हो जाने से आप के पितरों का भी पतन हो जायगा / अतः आप राजकुमार को विवाह के लिये तैयार होने का कोई यत्न करें"। यह बात हो ही रही थी कि राजा के कान में उनके पुत्र की यह घोषणा सुनायी पड़ी कि "मेरी माता 'किमिच्छक' नाम का व्रत कर रही हैं। इस अवसर पर जो कुछ किसी को मांगना हो, मुझसे मांग ले / मेरे शरीर से जो भी सम्भव होगा, उसे मैं पूरा करूँगा."| यह सुन राजा करन्धम ने पुत्र के निकट जाकर कहा-"यदि तुम्हारी घोषणा सत्य है तो तुम मेरी मांग पूरी करो, मेरी माँग यह है कि तुम मुझे मेरे पौत्र का मुख दिखानो"। माता के समक्ष की गयी प्रतिज्ञा तथा जनता के समक्ष की गयी घोषणा से विवश होकर राजकुमार बोला-"पिता जी ! है तो यह कार्य मेरे लिये अति कठिन और मेरे अब तक के जीवन के विपरीत, फिर भी माता के व्रत की पूर्ति और सत्य की रक्षा के लिये मैं निर्लज होकर विवाह करूँगा"|
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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