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________________ छोड़ने लगा। उस समय उसके श्वासानिल के आघात से उसकी अंगुलियों के बीच से अनगिनत शस्त्रधारी योद्धा प्रकट हुये / उनके सहयोग से उसने अपने शत्रुओं पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया। इस विजय से सम्पूर्ण राजसमाज ने उसका लोहा मान लिया और उसे कर देना स्वीकार कर लिया / कर मल कर योद्धाओं को प्रकट करने के कारण वह करन्धम नाम से विख्यात हुआ। राजा वीर्यचन्द्र की पुत्री वीराने स्वयंवर में करन्धम का वरण किया और उससे करन्धम को एक बड़ा भाग्यशाली पुत्र पैदा हुआ। राजा ने ब्राह्मणपुरोहितों की सम्मति से उसका नाम अवीक्षित रक्खा / वह समस्त वेद-वेदाङ्गों का पारदर्शी और सम्पूर्ण अस्त्रविद्याओं का उद्भट वेत्ता हुा / धीरता, वीरता बुद्धि और कान्ति में कोई उसकी तुलना नहीं कर सकता था। एक बार वह वैदिश के राजा विशाल की पुत्री वैशालिनी के स्वयंवर में गया। वहां उस कन्या को बलात् उसने अपने वश में कर लिया / इस बात से सब राजाओं ने अपना अपमान माना और कहा कि क्षमतां ललनामेतामेकस्माद् बलशालिनाम् | बहूनामेकवर्णानां जन्म धिग्वो महीभृताम् // 23 // क्षत्रियो यः क्षतत्राणं वध्यमानस्य दुर्मदैः। करोति तस्य तन्नाम वृथैवान्ये हि बिभ्रति / / 24 // बिभेति को न मरणात् को युद्धेन विनाऽमरः ? / ' विचिन्त्यैतन्न हातव्यं पौरुषं शस्त्रवृत्तिभिः / / 25 // हम बलवान् क्षत्रिय राजाओं के रहते यदि इस ललना का हरण हो जाता है और हम हरण करने वाले को क्षमा कर देते हैं तो हमारे जीवन को धिक्कार है // 23 // जो दुष्टों से पीड़ित होते हुये प्राणी का त्राण कर सके वही सच्चा क्षत्रिय है, जो ऐसा नहीं कर सकता उसका क्षत्रिय-नाम धारण करना व्यर्थ है // 24 // मृत्यु से किसे भय नहीं होता और युद्ध न करके कौन अमर हो जाता है ? तो जब ऐसी बात है तो हम शस्त्रजीवी क्षत्रियों को पौरुष का परित्याग कदापि न करना चाहिये // 28 // इन परस्परकथनों से सब राजा उत्साहित हो शस्त्र लेकर उठ खड़े हुये और अवीक्षित को जा घेरे।
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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