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________________ ( 132 ) यह विचार सुनने के बाद भी विश्ववेदी ने उसको खनित्र के विरुद्ध उसकाने का तथा समस्त पृथ्वी के साम्राज्य के प्रति उसका मन लुभाने का प्रयत्न करता ही रहा / अन्त में उसकी मूकसम्मति जान कर उसने उसके भाइयों को मिला लिया और चारों के पुरोहितों से खनित्र का नाश कराने के लिये श्राभिचारिक प्रयोग कराने लगा / श्राभिचारिक कर्म के पूरा होते ही चार कृत्यायें उत्पन्न हुई और वे खनित्र का वध करने उसके निकट गई, पर उसके महान् पुण्य से हतशक्ति हो उसका कुछ न कर सकीं। तब लौटकर उन सबों ने चारो पुरोहितों और उनके प्रेरक विश्ववेदी पर आक्रमण किया और उन सबों को एक साथ ही मार डाला। एक सौ अठारहवां अध्याय जब खनित्र को यह घटना ज्ञात हुई तो वह बड़ा विषण्ण और विस्मित हुअा, उसने इसका रहस्य वशिष्ठ मुनि से पूछा, उसे वशिष्ठ मुनि ने सारा रहस्य बताया / तब उसने सोचा कि "चारो पुरोहितों तथा मन्त्री विश्ववेदी के मेरे प्रति इन लोगों ने यह षड्यन्त्र न रचा होता और यदि यह षड्यन्त्र न रचा गया होता तो इन सबों की यह अकालमृत्यु क्यों होतो ? / अत: इस साम्राज्यको और मुझको धिक्कार है।" इस प्रकार इस घटना से खनित्र को बड़ा उद्वेग हुश्रा और वह अपने पुत्र तुप को राज्यासन पर अभिषिक्त कर स्वयं पत्नी को साथ ले तपस्या करने के हेतु जंगल चला गया / ___ एक सौ उन्नीसवां अध्याय __ खनित्र के पुत्र क्षुप ने ब्राह्मणों द्वारा ब्रह्मा के पुत्र क्षुप का उदात्त चरित्र सुनकर उन्हीं के समान उत्तमोत्तम कार्य करने की प्रतिज्ञा की। अकाल पड़ने पर वह बड़े-बड़े यज्ञ कर प्रजा का दुःख दूर करता था / कर से प्राप्त होने वाला सारा द्रव्य तथा राज्यकोष का अतिरिक्त धन वह ब्राह्मणों के सत्कार और प्रजा के हित में व्यय करता था। उसने अपनी पत्नी प्रमथा से वीर नामक एक प्रतापी पुत्र पैदा किया जिसका विवाह विदर्भदेशके नरेश की कन्या नन्दिनी से हुत्रा / वीर और नन्दिनी से एक विविंश नाम का महाप्रतापी पुत्र पैदा हुआ / उसके शासनकाल में समस्त प्रजा अत्यन्त सुखी, शान्त और समुन्नत थी। उसके राज्य में कभी दुर्भिक्ष तथा किसी प्रकार का कोई उपद्रव नहीं हुआ।
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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