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________________ उसके रूप-लावण्य से मुग्ध हो राजपुत्र ने उसके पिता से उसकी याचना की। राजा की अनुमति के बिना वैश्य को ऐसा करने का साहस न हुा / उसने राजा से कहा-"राजन् ! राजकुमार मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं, यदि आपकी अनुमति हो तो ऐसा किया जाय"। राजा ने क्षत्रियेतर कन्या से प्रथम विवाह की अनुमति न दी। तब राजकुमार बलपूर्वक उससे राक्षस विवाह करने को उद्यत हुआ / वैश्य ने राजा से रक्षा की प्रार्थना की / फलत: राजा और राजकुमार में युद्ध ठन गया / फिर अाकाश से उतरकर एक परिव्राजक ने राजा से कहा "राजन् ! अापका यह पुत्र वैश्यतनया में श्रासक्त होने के कारण धर्मभ्रष्ट और पतित हो गया है, यह क्षत्रिय से युद्ध करने का अधिकारी नहीं है, अतः आप युद्ध बन्द कर दें। एक सौ चौदहवाँ अध्याय जब राजा ने युद्ध बन्द कर दिया तब राजकुमार ने वैश्य-कन्या से विवाह कर राजा के निकट अपने कर्तव्य का निर्देश करने की प्रार्थना की। राजा ने उसे धर्मोपदेष्टा बाभ्रव्य अादि तपस्वी ब्राह्मणों के समीप भेज दिया / उन लोगों ने पशु-पालन, कृषि तथा वाणिज्य को उसका धर्म बताया। थोड़े दिन बाद उसे भनन्दन नाम का एक पुत्र पैदा हुआ / जब वह बड़ा हुआ तब हिमालय पर्वत पर तप करते हुये राजर्षि से उसने सम्पूर्ण अस्त्रविद्या सीखी और फिर अपने चचेरे भाई वसुरात आदि से राज्य का आधा भाग माँगा / उन लोगों ने. वैश्यपुत्र कह कर उसे राज्य का अनधिकारी बताया तथा राज्य का कुछ भी भाग देना स्वीकार न किया। तब उसने उन लोगों से युद्ध छेड़कर उन्हें पराजित कर राज्य से पृथक कर दिया और सारा राज्य पिता को अर्पित किया / पिता ने अपने को वैश्य बताते हुये राज्य का अनधिकारी बता उसे स्वीकार न राज्य का अनधिकारी न समझे, कारण कि न श्राप वैश्य हैं और न मैं वैश्यकन्या हूँ / वस्तुस्थिति कुछ और ही है, और वह यह कि पूर्व काल में सुदेव नाम के एक क्षत्रिय राजा थे, एक दिन वे वसन्त ऋतु में स्त्रियों के साथ विहार करने के निमित्त आम्रवन में गये, साथ में उनका मित्र नल भी था / नल ने मद्य-पान से उन्मत्त हो च्यवन मुनि की पुत्रवधू के साथ बलात्कार करने की चेष्टा की। इस बात को देख उसके पति प्रमति ने उसकी रक्षा करने के लिये राजा के क्षत्रियस्व को उबुद्ध करने का प्रयत्न किया / पर राजा अपने को वैश्य
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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