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________________ ( 116 ) षर न गिरने पाये" / काली इसके लिये सन्नद्ध हो गई और तब इस उपाय से रक्तबीज का वध हुआ। नवासीवाँ अध्याय __ रक्तबीज का बध हो जाने पर शुम्भ और निशुम्भ स्वयं दानवों की विशाल सेना लेकर युद्धक्षेत्र में अवतीर्ण हुये / सर्वप्रथम शुम्भ के अनुज निशुम्भ से देवी का तुमुल युद्ध हुआ। दोनों ओर से अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग हुा / अन्त में निशुम्भ देवी के हाथ मारा गया। नब्बेवाँ अध्याय निशुम्भ की मृत्यु से शुम्भ क्रोध से जल उठा / उसने देवी को फटकारा "तुम दूसरे के सहारे युद्ध करती हो और झूठ ही अपने पराक्रम का दम्भ भरती हो।" यह सुन देवी ने सारी शक्तियों को समेट कर कहा "मढ़ ! देख मुझे छोड़ दूसरी कौन स्त्री मेरी ओर से लड़नेवाली है। ये सब तो मेरी ही विभूतियाँ थीं और अब मुझ में ही समा गई हैं / अब मुझ अकेली से लड़ने को तयार हो जा"। इस प्रकार की वार्ता के साथ देवी और शुम्भ का भीषण संग्राम आरम्भ हुअा | यह असुरों का अन्तिम संग्राम था। इसमें असुरों की ओर से कोई बात उठा न रखी गई / फलतः यह युद्ध सब से बड़ा और भयंकर हुआ | अन्त में शुम्भ भी अपनी सारी सेना के साथ देवी के हाथ मार डाला गया / उसके मरते ही देवता हर्षोत्फुल्ल हो उठे, गन्धर्वो ने गायन और वादन किया, अप्सराओं ने नृत्य प्रस्तुत किया, पवित्र पवन बहने लगा, सूर्य सुप्रभ हो उठा, अग्नियाँ चमक उठी और दिशाएँ प्रशान्त हो गई। एक्यानबेवाँ अध्याय इस अध्याय में सर्वप्रथम देवी की उस स्तुति का उल्लेख है जो शुम्भ के वध के पश्चात् देवताओं ने की थी। उस में बताया गया है कि "महामाया ही विपन्न जनों का कष्ट दूर करती हैं / वह जगत् की माता और समस्त चराचर विश्व की ईश्वरी हैं / पृथ्वी, जल, सम्पूर्ण विद्यायें और उमस्त स्त्रियाँ उन्हीं के रूप हैं / जगत् की उत्पति, स्थिति, और संहार उनकी इच्छा पर निर्भर है। उनकी प्रसन्नता से समस्त दुःखों का और उनके ' रोष से समस्त अभीष्टों का नाश होता है / उनके आश्रितों को किसी प्रकार की विपत्ति नहीं होती, वे तो दूसरों के आश्रयदाता हो जाते हैं " / उस स्तुति से प्रसन्न हो देवी ने देवताओं को
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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