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________________ ( 113 ) प्रलय की अवस्था में भगवान् विष्णु क्षीरसागर में शेष की शय्या पर शयन कर रहे थे / लक्ष्मी जी उनकी सेवा में लगी थीं और ब्रह्मा जी उनके नाभिकमल दो राक्षस उत्पन्न हुये और वेब्रह्माजी को मारने दौड़े। ब्रह्मा ने अपनी असमर्थता और असहायता देख निद्रारूपिणी महामाया की स्तुति की। महामाया ने प्रसन्न हो विष्णु को जगा दिया। फिर विष्णु का उन असुरों से पांच सहस्र वर्षों तक घोर युद्ध हुआ और अन्त में विष्णु के चक्र से उनका संहार हुश्रा / इस अध्याय में अध्यात्म की अनेक बातें हैं जिनका मूलग्रन्थ से अध्ययन करना मनोरम और हितकर है / बयासीवाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि महिषासुर के घोर अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न की प्रतिक्रिया करने के निमित्त ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तथा इन्द्र अादि देवताओं के सामूहिक तेज से एक परम तेजस्विनी नारी के रूप में महामाया का प्राकट्य हुआ। जब उन्होंने विविध अस्त्र, शस्त्रों से सुसज्जित हो सिंह पर सवार हो कर युद्ध-नाद किया तो सारा संसार कम्पित हो उठा / महिषासुर की बड़ी बड़ी सेनायें चिक्षुर, चामर, उदग्र, महाहनु, असिलोमा, वाष्कल और विडालाक्ष के नेतृत्व में युद्धभूमि में अवतीर्ण हुई जिनके साथ देवी का बड़ा विकट युद्ध हुआ / अन्त में सारी असुरसेनायें देवी के हाथ मारी गई / तिरासीवाँ अध्याय . इस अध्याय में बताया गया है कि अपनी विशाल सेनाओं का संहार देख सेनापति युद्ध में स्वयं सामने आ गये और भिन्न भिन्न पद्धतियों से लड़ने लगे। जब वे सब के सब मार डाले गये तथा दुर्धर और दुर्मुख जैसे महापराक्रमी राक्षसों का भी वध हो गया तब असुरेन्द्र महिषासुर स्वयं युद्ध में उतरा / इसकी लड़ाई बड़ी उग्र और अद्भुत थी। यह कभी महिष, कभी सिंह और कभी हाथी बन कर लड़ता था; कभी भूमि और कभी अन्तरिक्ष से लड़ता था; लड़ते लड़ते कभी अदृश्य हो अस्त्रों की वर्षा करने लगता था। इस भीषणतम युद्ध ने समस्त त्रैलोक्य को क्षुब्ध कर दिया | अन्त में वाहन को छोड़ देवी स्वयं महिषासुर के ऊपर कूद पड़ी और उसे पैर के नीचे दबा तलवार से उसका शिरश्छेद कर दीं। उसका वध होते ही देवताओं में हर्ष की लहर दौड़ गई और समस्त देवता प्रसन्न हो देवी की स्तुति करने लगे। 8 मा० पु०
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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