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________________ ( 110 ) पितर्यसति नारीभिर्जियते हि पतिः स्वयम् | सति ताते कथं चाहं वृणोमि मुनिसत्तम ! // 34 // पिता के अभाव में स्त्रियां अपने पति का चुनाव स्वयं करती हैं / पिता के रहते, मुनिश्रेष्ठ ! मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ ? इस श्लोक के अनुसार पिता के न रहने पर ही स्त्रियों को अपना पति चुनने का अधिकार है किन्तु पिता के रहते इस विषय में उन्हें स्वतन्त्रता नहीं है / पचहत्तरवाँ अध्याय इस अध्याय में रैवत मनु के जन्म, उस मन्वन्तर के देवता, इन्द्र, ऋषि और राजवंश का वर्णन है / इसकी भी चर्चा इस निबन्ध में श्रा चुकी है। इस अध्याय में कुपुत्र के विषय में ऋतवाक ऋषि का हृदयोद्गार निम्नांकित श्लोंकों में वर्णित हुआ है जो सर्वथा यथार्थ है / जैसे....... अपुत्रता मनुष्याणां श्रेयसे न कुपुत्रता // 7 // मनुष्य का पुत्रहीन होना अच्छा पर कुपुत्रवान् होना अच्छा नहीं, क्योंकि कुपुत्रो हृदयायासं सर्वदा कुरुते पितुः / मातुश्च स्वर्गसंस्थांश्च स्वपितृन् पातयत्यधः // 8 // सुहृदां नोपकाराय पितृणां च न तृप्तये / पित्रोदुःखाय धिग्जन्म तस्य दुष्कृतकर्मणः / / 6 / / करोति सुहृदां देन्यमहितानां च तथा मुदम् / अकाले च जरां पित्रोः कुपुत्रः कुरुते ध्रुवम् // 12 // कुपुत्र पिता और माता के हृदय को सदैव सन्तप्त करता है और स्वर्गस्थ पितरों को नीचे गिरा देता है उससे न मित्रों का उपकार होता न पितरों की तृप्ति होती। उस कुकर्मी का जन्म पिता-माता के लिये दुःखदायक होता है। कुपुत्र मित्रों को दुःख और शत्रु को आनन्द देता है / वह माता पिता को चिन्ता से असमय में ही बूढ़ा बना देता है। छिहत्तरवाँ अध्याय इस अध्याय में चाक्षुष मनु के जन्म, उस मन्वन्तर के देवता इन्द्र, ऋषि और राजवंश का वर्णन है जिसका उल्लेख इस निबन्ध में पहले आ चुका
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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