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________________ उत्पन्न होने से नार कहे जाने वाले जल को अयन-स्थान बनाने के कारण नारायण नाम से संबोधित किया है, पृथ्वी को जल में मग्न जान कर उसका उद्धार करने के लिये वाराह का अवतार ग्रहण किया और जब उन्होंने पृथ्वी को उठाकर जल के ऊपर रख दिया तब ब्रह्मा ने पूर्वकल्प के समान इस वर्तमान सृष्टि की रचना की। अड़तालीसवाँ अध्याय इस अध्याय में यह कहा गया है कि ब्रह्मा ने पहले मानस पुत्र उत्पन्न किये / बाद में तमोगुणी शरीर से असुर और रात्रि का, सत्त्वगुणी शरीर से देवता और दिन का अन्य सत्त्वगुणी शरीर से पितर और सन्ध्या काल का तथा रजोगुणी शरीर से मनुष्य और ज्योत्स्ना का क्रम से निर्माण हुअा। उनके पूर्व मुख से ऋग्वेद, दक्षिण मुख से यजुर्वेद, पश्चिम मुख से सामवेद, और उत्तरमुख से अथर्ववेद का प्राकट य हुश्रा / शेष सारा जड़-चेतन जगत् भी उन्हीं के शरीर से कल्पारम्भ में ही प्रकट होता है | नवीन कल्प में जीवों की सारी सृष्टि उनके पूर्वकाल के कर्मों के अनुसार होती है और सारे सृष्ट पदार्थों का नामकरण भी उन्हीं के द्वारा वेदों में होता है / इस अध्याय में बताया गया है कि ब्रह्मा जी ने पहले अपने मुख से एक सहस्र सत्त्वगुणाप्रधान नर-नारी उत्पन्न किये। फिर कुछ दिन बाद अपने वक्षः अपनी जंघा से तमोगुणप्रधान एक सहस्र और अन्य नर-नारी उत्पन्न किये / इस तीसरी श्रेणी के नर-नारियों के जीवन में सात्त्विकता और संयम की बहुत कमी थी। इन में स्वतः मैथुन की इच्छा जागृत हुई और फिर उससे मैथुनी सृष्टि का आरम्भ हुआ / पहले लोगों में इच्छा, द्वेष, लोभ, मोह, अादि दुर्गुण उद्बुद्ध नहीं थे अतः उनमें परस्पर कलह नहीं होता था | वे घरबार नहीं रखते थे / इधर उधर नदी और समुद्र के किनारे तथा पर्वत और जंगलों में यथेच्छ विचरण करते थे / बाद में सर्दी-गर्मी के प्रकोप से बचने के लिये धीरे धीरे लोगों में स्थान द्रमी और घोष का निर्माण करने लगे। जो दो कोस लम्बा और उसका अाठवाँ भाग चौड़ा होता था तथा जिसके चारों ओर चहारदीवारी एवं खाइयाँ होती
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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