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________________ के धर्म का पालन न करने वाले व्यक्तियों को दण्ड दे और सभी मनुष्यों को अपने धर्म का पालन करने की प्रेरणा दे। यह पूरा अध्याय पठन और मनन के योग्य है। / उनतीसवाँ अध्याय इस अध्याय में गृहस्थाश्रम और वेद-विद्या को समस्त जगत् का आधार कहा गया है / बलि-वैश्वदेव की विधि तथा अतिथि का लक्षण बताकर बलिकर्म, वैश्वदेवकर्म तथा अतिथिसत्कार को गृहस्थ का परमावश्यक धर्म बताया गया है / सबसे महत्त्व की बात यह कही गयी है कि समाज में धनवान् व्यक्तियों के रहते अन्य लोगों को धनाभाव के कारण जो कुकर्म करने पड़ते हैं उनका उत्तरदायित्व धनी व्यक्तियों पर ही होता है। जैसा कि श्लोक से स्पष्ट है श्रीमन्तं ज्ञातिमासाद्य यो ज्ञातिरवसीदति / सीदता यत्कृतं तेन तत्पापं स समश्नुते // 36 // तीसवाँ अध्याय यह अध्याय श्राद्धकल्प नाम से प्रसिद्ध है। इसमें नित्य, नैमित्तिक कर्मों का तथा पार्वण, पाभ्युदयिक और एकोद्दिष्ट आदि विविध श्राद्ध कर्मों का, उनके योग्य काल और क्रम प्राप्त अधिकारियों का परिचय देकर उन्हें गृहस्थ का अवश्य कर्तव्य धर्म बताया गया है / पूरा अध्याय पढ़ने योग्य है / एकतीसवाँ अध्याय यह अध्याय पार्वणश्राद्धकल्प नाम से ख्यात है, इसमें मुख्य रूप से निम्नाङ्कित विषयों पर प्रकाश डाला गया है। (1) साप्त पौरुष सम्बन्ध क्या है ? (2) श्राद्ध करने से किन किन लोगों की तृप्ति होती है ? (3) श्राद्ध में कौन ग्राह्य हैं और कौन त्याज्य हैं 1 (4) श्राद्ध के दिन यजमान और यजनीय के लिये क्या क्या वर्ण्य है ? - पूरा अध्याय पढ़ने योग्य है / बत्तीसवाँ अध्याय इस अध्याय में उन वस्तुओं और कर्मों का वर्णन किया गया है जो पितरों को विशेष तृप्तिदायक हैं, साथ ही उन वर्जनीय वस्तुओं और कर्मों का भी वर्णन किया गया है जो पितरों को अप्रिय होने से त्याज्य हैं ! श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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