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________________ ४२ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. ॥१५ ॥ सुं० ॥ ते कळप सुखीयो थयो । एम सी वस राखे रे ॥ बिहु लव तें पूजा लहे । मेघराज मुदा मुनि नाषेरे ॥ १३ ॥ सुंद॥ इतिश्री ज्ञाता धर्मस्य चतुर्थाध्ययन काच्छप न्याय सज्झायम् ॥४॥ ॥४॥ थावच्चापुत्र न्याय सज्जायम् ॥ - (नयरी चंपावतो जाणीये) छारवती नयरी वमी, इंजपुरी अवतारो रे ॥ कृष्ण नरेसर राजीयो, त्रण खंग लखमी घर सारो रे ॥त्रण खंझ लक्ष्मी जेहने घरे, जादगं कुल कोमए। उपन बहुत्तर वली अनेरी बांधवानी जोम ए ॥ ते नगरीथी शान कूणे, रेवताचल दीपतो। तिहां नंदन नाम उद्यान मोटो, मेरु नंदन जीपतो ॥१॥ तिणे नया व्यवहारणी. थावच्चा ऋफिप्ररी रे॥सयल कटवे आगली, दान गुणे करी सूरी रे ॥-दान सूरी धने पूरी, थावच्चापुत्र सुत थयो, कला बहुत्तर धूर जणाव्यो, परणावीयो उबव जयो; बत्रीस रमणी एक दहामे, देवता सुख अनुनवे, एणे अवसरे नेमि जि ॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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