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________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. ६७ सार के बंदो० ॥ ४ ॥ मुगतिना सुख तेह लहस्ये । तजे प्रेम जे रीस || श्रीब्रह्म तसु पय नित नमे । मन मांहे रे वल आणि जगीस के वंदो० ॥ ५ ॥ इति अणगार गुण सज्जायम ॥ ३५ ॥ श्रीजीवाजीव विजत्ती सज्जाय ३६ जीव ने अजीव प्रकार रे । लखिये तत्व विचार | धर्म धर्म समय आकाश रे । पुद्गल जीव प्रकाश ||१|| जिन नापित निरतो जाणो रे । सम कितनी मति मन आणो ॥ करो ज्ञान कला - ज्यासरे । जिम पामो शिवपुर वास (यांकणी ) धर्म धर्म वे लोक प्रमाण रे । नर खेत्र समय मन जाए ॥ नन लोक लोके व्याप्यो रे । लोकें पुद्गल थिर थाप्यो, जिन० ॥ २ ॥ सवि पुद्गल दालि अरुपी रे । पुद्गल वर्णादि सरुपी, सयपंच अधिक वलि त्रीस रे । पुद्गलना नेद जगीस, जिन० ॥ ३ ॥ जीव सिद्ध संसार रे । तेहनी पर दोय संजारी ॥ तेह पनर प्रकारें सिद्धारे । व्यवहार नेद ए कीधा, जिन० ॥ ४ ॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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