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________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. .६५ कही रे । ही गुल जिम मीठ ॥ लेश्या पुदगल रसे सन रे। केवलज्ञानी दीठ ॥ जगत ॥५॥ सडया कलेवर सारिखो रे । पहिली त्रिहुंनो गंध ॥ वास कुसुम कपूरनो रे । बीजी त्रिहुं सुगंध ॥ जगत ॥ ६॥ सागर पत्र करवत जिसु रे । पहिली निहुंनो फास ॥ अर्क तूल बुश्समो रे । बीजी त्रिहुंनो विमास॥ जगत ॥ ७ ॥ पहिली अति निरदय हुवे रे । बीजी बह रीसाल ॥ त्रीजी कूम कपट नर्यो रे । एत्रण पाप रसाल ॥ जगत ॥॥ चोथी बीहे पापथी रे । पंचमी धरि धर्मध्यान ॥ बठी विषय रसें नही रे । ए शुल लेश्या मान ॥ जगत ॥ए॥ अंतर्मुहूर्त लहु गिणो रे । सघली लेश्या आयु ॥ उत्कृष्टी हिव जाणजो रे । अनुक्रमे एह उपाय ॥ जगत० ॥१॥ संख्या सागरोपमें रे । मुहरतसुं तेवीस ॥ पलीय असंखे जागसूं रे । दश सागर सजगीस ॥ जगत० ११॥ एम अधिक त्रिहुं सागरें रे। बिहुं सागर श्म हो ॥ मुहूरत सुं सागर दशेरे । एम तेत्रीसे जो ॥ जगत०
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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